भारत में शेयर बाज़ारों में पिछले दो महीनों से मंदी देखने को मिल रही है। दूसरी तिमाही के नतीजों में कमजोरी, डॉलर इंडेक्स में उछाल और विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की लगातार बिकवाली के कारण बाजार में कमजोरी आई है। 27 सितंबर को शिखर पर पहुंचने के बाद से कई सेक्टरों में तेज गिरावट देखने को मिली है। तब से अब तक बाजार 10 फीसदी से ज्यादा टूट चुका है।
इस बीच, 18 नवंबर को एफआईआई और घरेलू संस्थागत निवेशक (डीआईआई) के आंकड़ों से एफआईआई द्वारा बिकवाली में कमी तथा डीआईआई द्वारा लगातार खरीदारी का संकेत मिला है। इससे निवेशकों के सेंटीमेंट में कुछ सुधार हुआ है। सोमवार को एफआईआई ने 1,403 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। ये बिकवाली अक्टूबर की शुरुआत से अब तक की औसत दैनिक बिक्री 3,800 करोड़ रुपये से काफी कम है। हालांकि, यह राहत कुछ ही समय के लिए ही रही क्योंकि मंगलवार को एफआईआई की बिकवाली फिर से बढ़ गई और यह 3,411.73 करोड़ रुपये तक पहुंच गई।
रेलिगेयर ब्रोकिंग अजीत मिश्रा का कहना है कि ज्यादा भरोसेमंद रुझान के लिए, इस गति को एक या दो हफ्ते तक बनाए रखने की जरूरत है। इस बीच, डीआईआई लगातार खरीदारी करते हुए बजार को मजबूत सपोर्ट दे रहे हैं। हालांकि, एफआईआई की भागीदारी भी उतनी ही अहम है,खासकर बाजार के सेंटीमेंट के बूस्ट करने के लिए।"
भारतीय इक्विटी से एफआईआई की निकासी संयोग से बिटकॉइन में अभूतपूर्व तेजी के साथ हुई है। इस साल बिटकॉइन का भाव दोगुना से भी अधिक हो गया है। क्रिप्टोकरेंसी पिछली अखिरी ट्रेंडिंग 92,104 डॉलर पर हुई थी, जबकि एक दिन पहले यह 94,078 डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था।
बाजार जानकार एफआईआई की निकासी के लिए दो महत्वपूर्ण कारकों को जिम्मेदार मानते हैं। ये हैं अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां और दूसरी तिमाही की कमजोर नतीजे। इसके अलावा भू-राजनीतिक दिक्कतों और ग्लोबल ब्याज दर के रुझानों ने भी एफआईआई निवेश के उतार-चढ़ाव में योगदान दिया है। विश्लेषकों का सुझाव है कि इन मोर्चों पर स्पष्टता आने से बाजारों को राहत मिल सकती है। रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ने की आशंकाओं के कारण मंगलवार को दोपहर बाद बाजार में तेज करेक्शन हुआ। रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव असर यूरोप तक भी पहुंच सकता है।
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ट्राकॉम स्टॉक ब्रोकर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक पार्थिव शाह ने कहा कि ट्रंप द्वारा टैरिफ या संरक्षणवाद पर कोई भी आक्रामक कदम ग्लोबल फंडों को उभरते बाजारों की इक्विटी जैसी जोखिमपूर्ण परिसंपत्तियों से दूर छिटका सकता है। जनवरी 2025 तक हमारे पास इस बारे में एक स्पष्ट नजरिया होगा कि क्या राष्ट्रपति ट्रम्प की नीतियां महंगाई बढ़ाने वाली होंगी और अमेरिकी फेडरल रिजर्व इस पर कैसे प्रतिक्रिया देगा। ये फैक्टर भारत जैसे उभरते बाजारों में एफआईआई निवेश पर बड़ा असर डालेंगे।
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