भारत सरकार बेरोजगारी से जुड़े आंकड़े अब पहले से कम अंतराल पर जारी करने की तैयारी में है। साथ ही, सरकार इस साल के अंत तक इनफ्लेशन और जीडीपी के बेस ईयर में बदलाव को लेकर भी फैसला कर सकती है।
सूत्रों ने मनीकंट्रोल को बताया कि सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय शहरों में बेरोजगारी से जुड़े सर्वे को तीन महीने के बजाय हर महीने पेश करने की तैयारी में है। इसके अलावा, ग्रामीण इलाकों में हर तीन महीने पर रोजगार डेटा को जारी करने पर विचार किया जा रहा है।
मामले से वाकिफ एक सूत्र ने बताया, 'इन विकल्पों पर विचार कर हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या डेटा जारी करने की अवधि को कम किया जा सकता है।' मंत्रालय कंज्यूमर इनफ्लेशन बेस को बदलकर 2024 करने पर विचार कर रहा है, जबकि GDP में बेस ईयर को लेकर अब तक कोई बदलाव नहीं हुआ है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने 2022-23 के लिए घरेलू खपत खर्च सर्वे की रिपोर्ट जारी की है।
मंत्रालय घरेलू खपत से जुड़े खर्च को लेकर काफी कम अंतराल में दो सर्वे कर रहा है और दूसरा सर्वे अगले महीने पूरा हो जाने का अनुमान है। पिछले बार यह सर्वे 2011 में किया गया था। डेटा संबंधी गड़बड़ियों की वजह से 2017-18 में यह सर्वे टाल दिया गया था। इसके अलावा, सरकार कीमतों से जुड़ा डेटा इकट्ठा करने के मकसद से मार्केट सर्वे कर रही है। इससे कंज्यूमर इनफ्लेशन के लिए गुड्स बास्केट तय करने में मदद मिलेगी और इसका इस्तेमाल मंथली प्राइस डेटा इकट्टा करने में किया जाएगा।
एंप्लॉयमेंट डेटा
भारत का एंप्लॉयमेंट डेटा सरकार और अर्थशास्त्रियों के लिए विवाद का विषय रहा है। CMIE जैसी प्राइवेट एजेंसियां बेरोजगारी से जुड़े आंकड़ों के लिए रेफरेंस प्वाइंट बन गए हैं। फिलहाल, लेबर फोर्स सर्वे का इस्तेमाल कर शहरी बेरोजगारी से जुड़े आंकड़ों का आकलन किया जाता है।
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