इंडसइंड बैंक एक बार फिर से सुर्खियों में है। अफसोस यह कि इस बार भी इसकी वजह निगेटिव खबर है। बैंक पर एक तरफ जहां इनसाइडर ट्रेडिंग के आरोप लग रहे हैं वही दूसरी तरफ कमजोर गवर्नेंस और लीडरशिप को लेकर अनिश्चितता की बातें हो रही हैं। सवाल यह है कि क्या इंडसइंड बैंक की मुश्किल बढ़ने जा रही है? बैंक का शेयर पहले ही 1,550 रुपये के 52 हफ्ते के हाई से करीब 47 फीसदी गिर चुका है। 27 जून को यह करीब 3 फीसदी चढ़कर 860 रुपये पर बंद हुआ।
गिरावट के बाद शेयरों की कीमतें अट्रैक्टिव लेवल पर
IndusInd Bank के शेयरों के बारे में एक्सपर्ट्स की अलग-अलग राय है। कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि बैंक के शेयरों में जितनी गिरावट आ सकती थी, उतनी आ चुकी है। Elixir Equities के डायरेक्टर दीपन मेहता ने कहा कि अभी शेयरों की वैल्यूशन अट्रैक्टिव लेवल पर है। उनका कहना है कि इस स्टॉक को काफी नुकसान पहुंच चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि शेयरों को बेचने का समय खत्म हो चुका है। इनवेस्टर्स को इसमें निवेश बनाए रखने की सलाह है।
बैंक के 5 अफसरों पर इनसाइडर ट्रेडिंग के आरोप
IIFL Capital के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट रिकिन शाह ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में फ्रॉड से जुड़े कई खबरें आने के बावूजद शेयरों की कीमतों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है। हालांकि, अब भी शेयरों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता। सेबी के अंतरिम आदेश में 5 सीनियर अफसरों पर इनसाइडर ट्रेडिंग का आरोप लगा है। इनमें पूर्व सीईओ सुमंत कठपालिया का नाम शामिल है। इस आदेश में कुछ नई बातें भी बताई गई हैं।
आरोप गहरे और गंभीर लैप्सेज का संकेत देते हैं
IiAS के मैनेजिंग डायरेक्टर अमित टंडन ने कहा कि इंडसइंड बैंक पर लगे आरोप गहरे और स्ट्रक्चर लैप्सेज का इशारा करते हैं। उन्होंने कहा, "बोर्ड के लिए इसका मतलब क्या होगा? वह क्यों मैनेजमेंट को बचाने की कोशिश कर रहा है या ऐसा तो नहीं कि वह खुद सकते में है। अगर बोर्ड के खिलाफ कोई एक्शन होता है तो इंडसइंड बैंक के लिए मुश्किल और बढ़ सकती है।"
मैनजमेंट पर सच छुपाने के लग रहे आरोप
ऐसा लगता है कि इंडसइंड बैंक में कॉर्पोरेट लैप्सेज का मामला अनुमान से ज्यादा गहरा है। सेबी ने 2023 के बोर्ड के नोट का संज्ञान लिया है। इसके बाद जांच के लिए केपीएमजी की नियुक्ति हुई। इससे पहले के ये बयान झूठे साबित होते हैं कि बोर्ड को इस मामले के बारे में पहले से पता नहीं था। उसे इस बारे में सिर्फ मार्च 204 में पता चला। टंडन ने कहा कि यह मामला ऐसा है जो आसानी से खत्म होने वाला नहीं है। किसी वित्तीय संस्थान पर भरोसा खत्म होने का मतलब है कि दोबारा भरोसा हासिल करने में काफी समय लगेगा।
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