FPI selloff : नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी (NSDL) के ताजे आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने अक्टूबर के पहले पखवाड़े में भारतीय इक्विटी बाजार में बिकवाली जारी रखी है। इस अवधि में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने नेट बेसिस पर 97.84 अरब रुपये (1.17 अरब डॉलर) के शेयर बेचे हैं। एफपीआई ने सितंबर में छह महीने से चल रही खरीदारी का सिलसिला तोड़ दिया था। मार्केट एनालिस्ट्स का कहना है कि अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड के 16 सालों के हाई पर पहुंचने के साथ ही अमेरिकी बॉन्ड मार्केट भारत जैसे उभरते इक्विटी बाजारों की तुलना में ज्यादा आकर्षक हो गया है। इसके चलते इक्विटी बाजार का पैसा निकलकर बॉन्ड बाजार में जाता दिख रहा है। शेयरखान के गौरव दुआ का कहना है कि अमेरिका में उपभोक्ता खर्च और रिटेल बिक्री अभी भी मजबूत स्तर पर हैं। इसका मतलब है कि यहां ब्याज दरें लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर रहने की संभावना है। बाजार जानकारों का यह भी कहना है कि मध्य पूर्व में चल रहे संघर्ष के कारण जियोपॉलिटिकल चिंताओं ने भी बाजारों में जोखिम को बढ़ा दिया है और महंगाई बढ़ने की आशंका फिर से हावी हो गई है। गौरतलब है कि एफपीआई की बिकवाली के बावजूद, बेंचमार्क निफ्टी 50 इंडेक्स मजबूत बना रहा है। इस महीने के पहले पखवाड़े में निफ्टी में 0.57 फीसदी की बढ़त हुई है। बाजार को घरेलू निवेशकों की तरफ से हो रही लगातार खरीदारी से मदद मिली है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में लगातार 31 महीनों से घरेलू निवेशकों की ओर से निवेश आता दिखा है। एसआईपी के जरिए होने वाला निवेश अब तक के उच्चतम स्तर पर रहा है। Market outlook : बाजार लगातार दूसरे दिन गिरावट के साथ बंद, जानिए 20 अक्टूबर को कैसी रह सकती है इसकी चाल अक्टूबर के पहले पखवाड़े में एफपीआई ने क्या बेचा? अक्टूबर के पहले पखवाड़े में एफपीआई ने पावर, कंस्ट्रक्शन, आईटी और फाइनेंशियल शेयरों में बिकवाली की। पावर सेक्टर में इस अवधि में 97.31 रुपए की बिकवाली हुई। इस बिकवाली में एफपीआई की हिस्सेदारी 20.69 अरब रुपए की थी। मजबूत मांग के कारण अगस्त में पावर शेयरों में 115.63 अरब रुपये की एफपीआई खरीदारी हुई थी। सितंबर में एफपीआई ने आईटी शेयरों में भी खूब बिकवाली की है। अमेरिका में ब्याज दरों के लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बने रहने के डर के कारण आईटी शेयरों में ये बिकवाली आई है। आईटी कंपनियों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका से ही आता है।
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