उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में रह रहे करीब 10,000 बांग्लादेशी हिन्दू रिफ्यूजी परिवारों को जमीन के कानूनी मालिकाना हक जल्द से जल्द देने की प्रक्रिया शुरू करें। उन्होंने कहा कि इस काम में देरी न हो और जल्द कार्रवाई की जाए।
सीएम योगी ने दिए ये आदेश
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस कदम को एक "नैतिक जिम्मेदारी" बताते हुए कहा, "यह उन हजारों परिवारों के वर्षों पुराने संघर्ष को सम्मान देने का अवसर है, जिन्होंने भारत में शरण ली और अब तक उचित पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं। इन परिवारों के साथ पूरी संवेदनशीलता और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए।" मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, "यह सिर्फ एक नीतिगत फैसला नहीं है, बल्कि उन विस्थापित परिवारों को न्याय दिलाने की दिशा में एक संवेदनशील और ऐतिहासिक पहल है, जो वर्षों से अनिश्चितता में जीवन जी रहे हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "इस प्रयास को सामाजिक न्याय, मानवता और राष्ट्रीय जिम्मेदारी के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। यह उन लोगों को सम्मान देने का एक अवसर है, जिनका जीवन लंबे समय से उपेक्षा का शिकार रहा है।"
बंटवारे के बाद बांग्लादेश से आए थे हजारों परिवार
अधिकारियों के अनुसार, बंटवारे के बाद 1960 से 1975 के बीच बांग्लादेश से आए हजारों परिवार उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, बिजनौर और रामपुर जैसे जिलों में बसाए गए थे। उस समय इन्हें अस्थायी शिविरों में रखा गया और खेती करने के लिए ज़मीन दी गई थी। लेकिन कागज़ों में गड़बड़ी और प्रशासन की लापरवाही के कारण आज भी ज़्यादातर परिवारों को उस ज़मीन का कानूनी हक नहीं मिल पाया है।
अभी तक नहीं मिला जमीन का कानूनी हक
वहीं इस बारे में मुख्यमंत्री को जानकारी दी गई कि कई गांवों में ज़मीन तो आवंटित कर दी गई है, लेकिन वह ज़मीन वन विभाग के अधीन होने, अधूरी कागजी प्रक्रिया और जमीन पर कब्जा न होने जैसी वजहों से लोग अब तक कानूनी मालिक नहीं बन पाए हैं। कुछ जगहों पर दूसरे राज्यों से आए परिवार भी बसाए गए हैं, लेकिन उन्हें भी अब तक जमीन का कानूनी हक नहीं मिला है। ताजा जानकारी से यह भी पता चला है कि कई लोग सालों से उस ज़मीन पर खेती कर रहे हैं और पक्के घर भी बना चुके हैं, फिर भी उनके नाम अब तक सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हुए हैं।
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