New credit reporting rules: बैंक या वित्तीय संस्थान कर्ज देने के लिए जो पहली चीज देखते हैं, वो है आपकी क्रेडिट रिपोर्ट और क्रेडिट स्कोर। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर बैंक को कैसे पता चल जाता है कि आप पर कितने लोन चल रहे हैं, आपने EMI समय पर भरी है या नहीं, आपने किसी लोन पर डिफॉल्ट किया या नहीं। इसका जवाब है भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का क्रेडिट रिपोर्टिंग सिस्टम
RBI देश की क्रेडिट रिपोर्टिंग सिस्टम को अधिक पारदर्शी और सटीक बनाने के लिए लगातार काम कर रहा है। इसके लिए ‘क्रेडिट इंफॉर्मेशन रिपोर्टिंग डायरेक्शंस, 2025’ जारी किया गया है। इन दिशा-निर्देशों के तहत बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अब उधारकर्ताओं की जानकारी हर महीने दो बार क्रेडिट ब्यूरो को अनिवार्य रूप से भेजनी होगी, 7 और 22 तारीख तक।
MicroSave Consulting में BFSI लीड शुभा भानु का कहना है कि फ्रीक्वेंट अपडेट से डेटा में ब्लाइंड स्पॉट कम होगा और उधारी से जुड़े फैसले अधिक जिम्मेदारीपूर्ण बनेंगे। आइए जानते हैं कि आपकी क्रेडिट रिपोर्ट कैसे तैयार होती है और नए क्रेडिट रिपोर्टिंग सिस्टम का क्या असर हुआ है।
नए क्रेडिट रिपोर्टिंग सिस्टम का असर
- पहले तक क्रेडिट डेटा महीने में सिर्फ एक बार अपडेट होता था, जिससे 30 से 40 दिन तक लोन डेटा पुराना बना रहता था। नई व्यवस्था से रिपेमेंट और डिफॉल्ट की जानकारी रीयल टाइम के करीब मिलेगी, जिससे बैंकों को बेहतर जोखिम मूल्यांकन में मदद मिलेगी।
- सभी क्रेडिट इंफॉर्मेशन कंपनियों (CICs) को अब एक यूनिफॉर्म स्कोर रेंज (300–900) अपनानी होगी। इससे उधारकर्ता की साख समझना आसान हो गया है।
- अब हर उधारकर्ता का डेटा सरकारी ID (PAN, पासपोर्ट, वोटर ID आदि) से लिंक रहता है। इससे एक ही रिपोर्ट में सभी ओपन/क्लोज लोन, डिफॉल्ट, कानूनी मामले और गारंटर की जिम्मेदारियां शामिल होती है।
- CIC अब गैर-लाइसेंस प्राप्त संस्थाओं को भी क्रेडिट डेटा दे सकेंगी, बशर्ते कि उधारकर्ता की स्पष्ट अनुमति हो। हालांकि, इसके लिए कड़े डाटा सुरक्षा मानक लागू रहेंगे।
विशेषज्ञों के अनुसार, नई गाइडलाइंस से बैंकों को अपने आईटी सिस्टम और प्रोसेसेज में सुधार करना होगा। लेकिन इसके दूरगामी फायदे होंगे- जवाबदेह लोन सिस्टम, कम डिफॉल्ट और ज्यादा सटीक ऋण मूल्यांकन।
क्रेडिट रिपोर्ट क्या है और कैसे तैयार होती है?
क्रेडिट रिपोर्ट में किसी व्यक्ति या संस्था की लोन और क्रेडिट से जुड़ी पूरी जानकारी दर्ज होती है। इसमें आपके द्वारा लिए गए लोन, क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल, भुगतान की नियमितता, डिफॉल्ट, ओवरड्यू, और क्रेडिट स्कोर जैसी जानकारियां शामिल होती हैं।
बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान क्रेडिट ब्यूरो को जो जानकारी देते हैं, उसके आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की जाती है। यह लोन देने से पहले उधारकर्ता की साख (creditworthiness) को परखने में मदद करती है।
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