Justice Bhushan Ramkrishna Gavai : भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई को अगला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश केंद्रीय कानून मंत्रालय को की है। बता दें कि परंपरा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस ही अपने उत्तराधिकारी का नाम सरकार को भेजते हैं और इस बार भी यही प्रक्रिया अपनाई गई। वहीं जस्टिस बीआर गवई 14 मई को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। बता दें कि देश का मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
दलित समुदाय से आते हैं जस्टिस गवई
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई दलित समुदाय से आते हैं। सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण नहीं होने के बावजूद जस्टिस गवई का चयन एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया। उनके पिता आरएस गवई एक राजनेता थे। उन्होंने महाराष्ट्र में राजनीति करने के लिए रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) नाम की पार्टी बनाई थी। हालांकि आरपीआई गवई पार्टी राजनीति में कभी उभर के सामने नहीं आ पाई। हांलाकि साल 1998 में आरएस गवई ने लोकसभा का चुनाव जीता और अमरावती से चुनकर देश के सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा के सदस्य बने। वो कांग्रेस की सदस्यता लिए बिना पार्टी से करीब 40 साल तक जुड़े रहे। वहीं जब देश में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की सरकार यानी यूपीए की सरकार बनी तो आरएस गवई को केरल, बिहार, सिक्किम का राज्यपाल बनाया।
आरएस गवई के दो बेटों में एक बी आर गवई, जिन्होंने वकालत का रास्ता चुना और अब देश के मुख्य न्यायधीश बनने जा रहे हैं। आरएस गवई का दूसरे बेटे राजनीति में ही बने रहे।
40 पहले शुरू की थी वकालत
जस्टिस बीआर गवई का जन्म 24 नवंबर, 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उन्होंने 16 मार्च, 1985 को अधिवक्ता के तौर पर उन्होंने शुरुआत की। शुरुआती दौर में उन्होंने 1987 तक वरिष्ठ अधिवक्ता राजा एस. भोंसले (जो बाद में महाधिवक्ता और हाईकोर्ट के जज बने) के अधीन कार्य किया। इसके बाद 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र रूप से वकालत की। 1990 के बाद वे मुख्य रूप से बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में प्रैक्टिस करते रहे, जहाँ उन्होंने संवैधानिक और प्रशासनिक मामलों में विशेषज्ञता हासिल की।
इन फैसलों के कारण चार्चा में आए थे
बता दें कि पिछले साल जस्टिस बीआर गवई का नाम बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ दिए गए फैसले के कारण चर्चा में आया था। उन्होंने भाजपा शासित सरकारों द्वारा बुलडोजर का प्रयोग कर गरीबों के घर तोड़ने को लेकर एक महत्वपूर्ण जजमेंट दिया था, जिसमें उन्होंने इसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया था। जस्टिस गवई ने अपने फैसले में कवि प्रदीप की कविता का संदर्भ लिया और कहा कि घरों को नष्ट करना एक परिवार के संवैधानिक अधिकार पर प्रहार है। जस्टिस गवई उस पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की संवैधानिकता की जांच की थी।
कई अहम पदों पर किया काम
जस्टिस गवई ने नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए स्थायी वकील के तौर पर भी सेवाएं दी हैं। उन्हें 14 नवंबर, 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और बाद में 12 नवंबर, 2005 को उन्हें स्थायी न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने मुंबई की मुख्य पीठ और नागपुर, औरंगाबाद और पणजी में स्थित पीठों पर कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की। इसके बाद 24 मई, 2019 को उन्हें भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। उनका कार्यकाल 23 नवंबर, 2025 तक रहेगा।
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