लाइफ इंश्योरेंस की टर्म पॉलिसी सस्ती हो सकती है। जीएसटी काउंसिल टर्म लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी पर जीएसटी हटा सकती है। हालांकि, ऐसी पॉलिसी जिसमें इनवेस्टमेंट का कंपोनेंट होगा, उन पर जीएसटी जारी रहेगा। जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक में इसका फैसला हो सकता है। जीएसटी काउंसिल की बैठक 9 सितंबर को होने वाली है। सरकार के एक सीनियर अफसर ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर यह जानकारी दी।
टर्म लाइफ इंश्योरेंस का प्रीमियम घट जाएगा
उन्होंने कहा, "लाइफ इंश्योरेंस (Life Insurance) की ऐसी पॉलिसी जिसमें इनवेस्टमेंट का कंपोनेंट शामिल होगा, उन्हें जीएसटी से छूट नहीं मिलेगी। ऐसी पॉलिसी को जीएसटी से छूट देने का कोई मतलब नहीं है। दरअसल यह एक तरह से निवेश है। हमें जीवन की अनिश्चितता को कवर करने वाली पॉलिसी को छूट देनी है न कि निवेश को।" टर्म पॉलिसी को जीएसटी से छूट मिलती है तो इसका सीधा असर उसके प्रीमिमय पर पड़ेगा। प्रीमियम कम होने से ऐसी पॉलिसी खरीदने में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ सकती है।
टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी का मतलब
टर्म पॉलिसी लाइफ इंश्योरेंस की ऐसी पॉलिसी हैं, जो सिर्फ रिस्क कवर करती हैं। इनमें इनवेस्टमेंट का कंपोनेंट शामिल नहीं होता है। टर्म पॉलिसी खरीदने वाले व्यक्ति की अगर मौत पॉलिसी के कवर पीरियड में हो जाती है तो बीमा कंपनी से उसे इंश्योरेंस का अमाउंट मिलता है। लेकिन, अगर व्यक्ति के साथ कोई अनहोनी नहीं होती है तो पॉलिसी का पीरियड खत्म होने पर उसे बीमा कंपनी की तरफ से किसी तरह का पेमेंट नहीं किया जाता है।
सरकार के रेवेन्यू को 200 करोड़ का लॉस
ऊपर जानकारी देने वाले अधिकारी ने बताया कि टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी को जीएसटी से छूट देने से सरकार को रेवेन्यू का सालाना करीब 200 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। एकेएम ग्लोबल के पार्टनर (टैक्स) संदीप सहगल ने कहा कि अगर सरकार टर्म पॉलिसी से जीएसटी हटाती है तो इसका स्वागत होगा। इससे इंश्योरेंस सस्ता होगा। इससे इंश्योरेंस कंपनियों को सेल्स बढ़ाने में मदद मिलेगी।
इनवेस्टमेंट कंपोनेंट वाली पॉलिसी पर जीएसटी बना रहेगा
एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसी इंश्योरेंस पॉलिसी जिसमें इनवेस्टमेंट का कंपोनेंट होगा, उनकी प्रीमियम ज्यादा बनी रहेगी। ऐसी पॉलिसी पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है। इससे उनका प्रीमियम काफी बढ़ जाता है। इनवेस्टमेंट कंपोनेंट वाली लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी ग्राहक को इंश्योरेंस के साथ निवेश की भी सुविधा देती है। ऐसी पॉलिसी के मैच्योर करने पर ग्राहक को बीमा कंपनी की तरफ से पेमेंट किया जाता है। यह ग्राहक की तरफ से पॉलिसी में निवेश किया गया पैसा होता है।
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