एक एनालिसिस में खुलासा हुआ है कि कई लिस्टेड कंपनियों पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ रहा है। यह बोझ इतना अधिक है कि वे अपने लोन का ब्याज भी भर पाने की स्थिति में नहीं हैं। अधिक बोझ वाली कंपनियों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। यह एनालिसिस एसोसिएटेड प्रेस (AP) ने किया है। इसमें पाया गया कि इस प्रकार के कंपनियों की संख्या दुनिया भर में करीब 7 हजार हो गई हैं और इसमें से करीब 2 हजार तो अमेरिका में हैं। डराने वाली बात ये है कि इसमें से अरबों डॉलर के चुकाने की ड्यू डेट नजदीक आ रही है और ये 'जॉम्बी कंपनियां' चुकाने की स्थिति में नहीं है। वैलेंस सिक्योरिटीज (Valens Securities) के एमडी Robert Spivey का कहना है कि ये खत्म होने वाली हैं।
Zombies Companies का मतलब क्या है?
जॉम्बीज का मतलब ऐसी कंपनियों से है जो पिछले तीन साल से अपने कारोबार से इतना पर्याप्त पैसा नहीं बना पा रही हैं कि वे अपने लोन का ब्याज चुका सकें। इनकी संख्या इसलिए बढ़ रही है क्योंकि जब कुछ वर्षों तक ब्याज दरें काफी कम थीं तो उन्होंने सस्ते में खूब कर्ज ले लिया लेकिन फिर महंगाई की मार ने उनके कर्ज की लागत को दस साल के हाई पर पहुंचा दिया। कई जॉम्बीज के पैस कैश रिजर्व नहीं है और चूंकि उनके कई लोन पर ब्याज फिक्स है नहीं तो बढ़ती हुई दरें उन्हें परेशान कर रही हैं।
अगर यह हुआ तो मच जाएगा हाहाकार
जॉम्बीज की संख्या जितनी तेजी से बढ़ रही है, उससे एक खतरा भी तेजी से बढ़ रहा है कि अगर इन्होंने दिवालिया होने के लिए याचिका दायर कर दिया तो हाहाकार मच जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि एपी के एनालिसिस के मुताबिक करीब एक दर्जन देशों में मौजूद इन कंपनियों में कम से कम 1.30 करोड़ एंप्लॉयीज हैं। अभी वैसे ही अमेरिका में दिवालिया होने वाली कंपनियों की संख्या 14 साल के हाई पर पहुंच गई हैं। कॉरपोरेट बैंकरप्सी भी कनाडा, यूके, फ्रांस और स्पेन में करीब एक दशक या इससे अधिक समय के हाई पर पहुंच गया।
रीफाइनेंस का फायदा क्यों नहीं उठा पाई कंपनियां?
इस साल की शुरुआत में सैंकड़ों जॉम्बीज ने अपने लोन को रीफाइनेंस किया। लेंडर्स ने भी उन्हें रीफाइनेंस की सुविधा दा क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि फेडरल रिजर्व मार्च में दरों में कटौती कर सकता है। इसके चलते एपी की एनालिसिस में शामिल 1 हजार से अधिक जॉम्बीज के शेयर छह महीने में 20 फीसदी या इससे अधिक उछल गए। हालांकि अधिकतर कंपनियों ने रीफाइनेंस नहीं कराया और अब समय तेजी से बीत रहा है। सितंबर तक फेड दरों में कटौती कर सकता है और इस साल का इकलौता होगा लेकिन दिक्कत ये है कि जॉम्बीज को 1.1 लाख करोड़ डॉलर का लोन चुकता करना है जिसमें से दो-तिहाई की ड्यू डेट इस साल के आखिरी तक है।
कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर पहले ही फेड दरों में कटौती कर देता है तो छंटनी, कंपनियों की बिक्री या उनके बंद होने की आशंका दूर हो सकती है लेकिन डिफॉल्ट और दिवालिएपन से इकॉनमी को तगड़ा झटका लगेगा। अब सवाल उठता है कि इतनी गंभीर स्थिति क्यों आई तो इसकी वजह ये है कि जॉम्बीज ने जो कर्ज लिया, उसका इस्तेमाल विस्तार, हायरिंग या तकनीकी में निवेश की बजाय उन्होंने अपने शेयरों के बायबैक और टॉप एग्जेक्यूटिव्स को अधिक पेमेंट जैसी चीजों पर किया। इससे नगदी की किल्लत हो गई।
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