BRS चीफ के चंद्रशेखर राव का लगातार तीसरी बार तेलंगाना का मुख्यमंत्री बनने का सपना टूट गया। उधर, कांग्रेस अलग राज्य बनने के बाद पहली बार तेलंगाना में सरकार बनाने जा रही है। राज्य बनने के बाद लगातार दो बार सत्ता में रहने वाली बीआरएस का कार्यकर्ताओं को इस बार हैट्रिक बनाने की उम्मीद थे। उन्होंने इसके लिए खूब मेहनत भी की थी। लेकिन, 3 दिसंबर को आए नतीजों ने यह साबित कर दिया कि सफलता के लिए एक ही रणनीति हर बाार काम नहीं करती। बीआरएस की हार के लिए ये 7 कारण जिम्मेदार हैं: 1. BRS के विधायकों से खुश नहीं थे मतदाता बीआरएस ने 2014 के विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल की थी। 2018 में हुए चुनावों में पार्टी ने अपने उम्मीदवार ज्यादा नहीं बदले थे। दूसरी बार भी पार्टी आसानी से जीत गई थी। इससे 2023 के चुनावों में बीआरएस और इसके कार्यकर्ताओं का हौसला बुलंद था। उसने एक बार फिर उम्मीदवारों की लिस्ट में ज्यादा बदलाव नहीं किया। लेकिन, इस बार स्ट्रेटेजी गलत साबित हुई। बीआरएस के ज्यादातर पुराने उम्मीदवार चुनाव हार गए। मतदाताओं को बीआरएस प्रमुख का तानाशाही रवैया पसंद नहीं आया। कांग्रेस ने मौके का फायदा उठाया। उसने बीआरएस के खिलाफ खुलकर हमला किया और चुनाव जीतने में सफल रही। 2. अति आत्मविश्वास के चंद्रशेखर राव को इस बात का ज्यादा ही भरोसा था कि लोग उनकी सरकार को पसंद करते हैं और वे तीसरी बार उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका देंगे। हालांकि, केसीआर और उनकी सरकार के बारे में लोगों की राय अच्छी है लेकिन पार्टी के खिलाफ मतदाताओं की नाराजगी ऐसी थी उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया। बीआरएस के वर्किंग प्रेसिडेंट केटी रामा राव यानी केटीआर ने यह माना है कि उन्होंने केसीआर को सलाह दी थी कि अगर पार्टी उम्मीदवारों को बदलती है तो वह 100 तक सीटे जीत सकती है। चुनावी नतीजों से साबित हो गया है कि पुराने उम्मदवारों को टिकट देकर बीआरएस ने गलती की। 3. वेल्फेयर स्कीम बीआरएस का अनुमान था कि उनकी सरकार ने लोगों के लिए जो वेल्फेयर स्कीमें शुरू की है, उनकी बदौलत वह फिर से सत्ता में आने में कामयाब होंगे। उनका मानना था कि पेंशन से लेकर 2बीएचके स्कीम वोटर्स को उन्हें वोट देने के लिए प्रेरित करेंगी। लेकिन, यह सोच उलटी पड़ गई। कुछ स्कीमों का उल्टा असर देखने को मिला। दलित बंधु स्कीम के लाभार्थियों का जिस तरह से चुनाव किया गया, उससे लोग खुश नहीं थे। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में लोगों के लिए अच्छी स्कीमों के वादे किए। इसमें कई स्कीमें ऐसी थीं, जो बीआरएस की स्कीमों से अच्छी थीं। 4. सत्ता विरोधी लहर लगातार दो बार सत्ता में रही पार्टी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर होना स्वाभाविक है। तेलंगाना में भी बीआरएस की सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर देखने को मिली। लोग साढ़े नौ साल से बीआरएस की सरकार को देख रहे थे। उन्होंने दो बार केसीआर को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन, उन्होंने बीआरएस को तीसरी बार वोट देने की जगह सत्ता में बदलाव करने का फैसला किया। भाजपा भी तेलंगाना में ताल ठोक रही थी। लेकिन, लोगों ने कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका देना ठीक समझा। 5. बेरोजगार युवाओं का गुस्सा तेलंगाना राज्य के गठन के पीछे लोगों की उम्मीदें, जरूरतें और सपने पूरे करने का मकसद था। पानी, फंड और सरकारी विभागों में नौकरी में राज्य के लोगों को पर्याप्त मौके मिलने का सपना युवाओं ने देखा था। लेकिन, सरकारी विभागों की खाली सीटों को भरने के लिए सरकार की तरफ से जो कोशिश की गई, उससे राज्य के युवा खुश नहीं थे। उनमें सरकार के खिलाफ गुस्सा था। तेलंगाना स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन (TSPSC) ने चुनाव से 12 महीने पहले खाली पदों को भरने के लिए कई नोटिफिकेशन जारी किए। लेकिन, इसका फायदा नहीं हुआ। ग्रुप-1 पदों के लिए प्रिलिम्स दो बार रद्द कर दिए गए। कई नौकरियों के लिए परीक्षाओं का आयोजन तो हुआ, लेकिन उसके नतीजे नहीं आए। इससे लोगों को यह अंदाजा हो गया था कि इस बार युवाओं का वोट बीआरएस के खिलाफ जा सकता है। 6. बीआरएस और बीजेपी के एक ही नाव पर सवार होने की धारणा कर्नाटक के चुनावों से पहले तेलंगाना में यह धारणा बनी थी कि भाजपा तेलंगाना में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरेगी। यह माना जा रहा था कि भाजपा और बीआरएस में करीबी दोस्ती है। हालांकि, बाद में दोनों के बीच कुछ मतभेद उभरकर सामने आए। बीजेपी राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका में नजर आई। राजनीतिक समीकरण बदलने के बाद ED ने दिल्ली शराब घोटाले मामले में केसीआर की बेटी से पूछताछ की थी। लेकिन, कर्नाटक में चुनावी नतीजे आने के बाद तेलंगाना में राजनीतिक समीकरण बदल गए। यह धारणा बनी कि कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए बीआरएस और भाजपा मिलकर काम कर रही हैं। तेलंगाना के संवेदनशील मतदाताओं ने इसे गंभीरता से लिया। भाजपा ने बीआरएस पर हमला करने की जगह कांग्रेस को निशाना बनाया। इससे लोगों को यह भरोसा और मजबूत हुआ कि दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। 7. परिवार का शासन कांग्रेस ने यह नारा दिया था कि वह तेलंगाना में केसीआर परिवार के शासन को खत्म करना चाहती है। लोगों को यह नारा पसंद आया। केसीआर राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके बेटे केटीआर और उनके भतीजे टी हरीश राव कैबिनेट मंत्री थे। केसीआर की बेटी कविता तेलंगाना लेजिसलेटिव काउंसिल की सदस्य हैं। उनके करीबी सहयोगी संसद के सदस्य हैं। कांग्रेस ने इस पर जमकर निशाना साधा। लोगों को यह लगा कि अलग राज्य बनने के बाद से ही सरकार एक परिवार की चल रही है। कांग्रेस ने लोगों की इस सोच का फायदा उठाया।
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