Thursday, November 2, 2023

MP Election 2023 : आजादी के 75 साल बाद भी जाति की छाया से बाहर नहीं निकल सकी है राजनीति

मध्य प्रदेश में Congress और BJP दोनों ने ही चुनावी रणनीति बनाने में जातीय संतुलन का ख्याल रखा है। इसकी वजह यह है कि आजादी के 75 साल बाद भी देश की राजनीति जाति की छाया से बाहर नहीं निकल सकी है। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी-सीएसडीएस के सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 55 फीसदी भारतीय अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट देना पसंद करते हैं। मध्य प्रदेश में तो यह आंकड़ा 65 फीसदी है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि एमपी में विधानसभा चुनावों में जीत वही पार्टी हासिल करेगी, जो जातीय संतुलन बनाने में सफल रहेगी। दोनों दलों की उम्मीदवारों की लिस्ट पर गौर करने से पता चलता है कि टिकट देने में जाति के पहलू का खास ध्यान रखा गया है। राज्य में हिंदू आबादी 91 फीसदी है। मुस्लिम 7 फीसदी और अन्य धर्म के लोग करीब 2 फीसदी हैं। आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 50 फीसदी, एसटी 20 फीसदी और एसटी 15 फीसदी है। 15 फीसदी हिस्सेदारी ऊपरी जाति के लोगों की है। दोनों दलों ने इन आंकड़ों को ध्यान में रखा है। भाजपा ने किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है। ब्राह्मण और ठाकुर उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा टिकट 39 फीसदी सीटों पर ओबीसी उम्मीदवारों की स्थिति मजबूत है। 48 फीसदी सीटों पर जनरल कैटेगरी के उम्मीदवारों की पकड़ मजबूत दिख रही है। 35-36 फीसदी सीटों पर एससी-एसटी उम्मीदवार मजबूत नजर आते हैं। मुस्लिम उम्मीदवार सिर्फ 1 फीसदी सीटों के लिए ताल ठोंक रहे हैं। दोनों दलों ने सबसे ज्यादा टिकट ब्राह्मण और ठाकुर को दिए हैं। ये दोनों ही राज्य में सबसे मजबूत समुदाय हैं। ऊपरी जाति और ओबीसी मतदाताओं में भाजपा की अच्छी पैठ है। 2008 के चुनावों में भाजपा सिर्फ अल्पसंख्यकों को छोड़ करीब सभी समुदायों और जातियों के बीच कांग्रेस से आगे थी। यह भी पढ़ें : Chhattishgarh Election 2023 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली रैली से क्या भाजपा कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा? ओबीसी वोटों पर दोनों दलों की निगाहें 2013 के विधानसभा चुनावों में भी इसी तरह का ट्रेंड देखने को मिला था। उमा भारती के भाजपा में लौट आने से पार्टी को मजबूती मिली थी। इससे ओबीसी मतदाताओं में भाजपा की पैठ बढ़ी थी। 2013 के चुनावों में BSP ने बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल के इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया था। 2018 के चुनावों में भी भाजपा को ऊपरी जातियों और ओबीसी का समर्थन मिला था। 2018 में एससी-एसटी उत्पीडन अधिनियम के मसला काफी चर्चा में रहा था। सुप्रीम कोर्ट के इस कानून के प्रावधानों में बदलाव करने से नाराज दलित और आदिवासियों ने कांग्रेस का समर्थन किया था। हालांकि, केंद्र की भाजपा सरकार ने संवैधानिक संशोधन के जरिए पुरानी स्थिति बहाल कर दी थी। कांग्रेस के पास ओबीसी चेहरों की कमी इस बार भाजपा फिर से ओबीसी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है। वह इस बात पर जोर देती रही है कि एक तरफ जहां केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओबीसी से आते हैं वही राज्य में शिवराज सिंह चौहान का संबंध इसी समुदाय से है। उधर, कांग्रेस के पास सीनियर लेवल पर ओबीसी नेताओं की कमी है। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ दोनों ही ऊपरी जाति से आते हैं। ऐसे में कांग्रेस को ओबीसी मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है।

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