कांग्रेस ने 15 अक्टूबर को मध्य प्रदेश में 144 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की। लिस्ट ने कई लोगों को चैंकाया। इसकी वजह यह है कि आम तौर पर यह पार्टी उम्मीदवारों के नामों के ऐलान के लिए अंतिम वक्त तक इंतजार. करती थी। इसका मकसद उन लोगों के विरोध से बचना था, जो टिकट नहीं मिलने के बाद अपने गुस्से का इजहार करते हैं। सवाल है कि इस बार कांग्रेस ने क्यों परंपरा से हटने का फैसला किया? दरअसल, इस बार पार्टी की सेंट्रल कमेटी (CEC) को राज्य इकाई से उम्मीदवारों की एक लिस्ट मिली थी। इस लिस्ट से उम्मीदवारों का चुनाव करने में हाई प्रोफाइल कमेटी को सिर्फ कुछ मिनट्स का समय लगा। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ पहले ही आपसी खींचतान को लेकर चल रही चर्चाओं पर विराम लगाने की कोशिश की है। इन दोनों नेताओं के एक साथ आ जाने का असर दूसरे नेताओं पर भी पड़ा है। कमलनाथ-दिग्विजय में सुलह कमलनाथ ने पहले भी दिग्विजय सिंह को साधने की कोशिश की थी। लेकिन, वे नाकाम रहे थे। लेकिन, बाद में दोनों नेताओं के बीच सुलह हो गई। 19 अक्टूबर को कांग्रेस ने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की थी। साथ ही पहली सूची में शामिल तीन उम्मीदवारों के नाम बदल दिए थे, क्योंकि उनके निवार्चन क्षेत्र में कार्यकर्ताओं का विरोध देखने को मिला था। अब ऐसा लगता है कि टिकट बंटवारे को लेकर आम तौर पर दिखने वाला विरोध इस बार देखने को नहीं मिला है। कहीं-कहीं कुछ विरोध दिखा है, लेकिन वह बहुत ताकतवर नहीं है। बताया जाता है कि कमलनाथ और उनकी टीम ने पिछले 2-3 सालों में कई सर्वे किए हैं। इनमें 230 विधानसभा क्षेत्रों की टोह लेने की कोशिश की गई। इससे उन उम्मीदवारों के चुनाव में मदद मिली, जो चुनाव जीत सकते हैं। सर्वे के आधार पर 70 फीसदी टिकटों का बंटवारा इस बार 60-70 फीसदी टिकट सर्वे के नतीजों के आधार पर दिए गए हैं। इस बार चंबल-ग्वालियर इलाके में उम्मीदवारों के चयन में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। इसकी वजह यह है कि इस इलाके के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधियां ने 2020 में कांग्रेस को छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था। सिंधिया का हमेशा टिकट बंटवारे में ज्यादा असर होता था। इसकी वजह यह है कि इस इलाके में उनकी जबर्दस्त पकड़ मानी जाती है। उधर, छत्तीसगढ़ में भी इस बार कांग्रेस ने पहली बार स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों को भेजा। सदस्य हर जिले में जाकर वहां संभावित उम्मीदवारों से बातचीत की। इससे जमीनी स्तर पर संभावित उम्मीदवारों के बारे में जानकारी जानकारी जुटाने में मदद मिली। इससे टिकट बंटवारे में लॉबीइंग की भूमिका घट गई। बघेल और सिंहदेव के बीच संतुलन छत्तीसगढ़ में उम्मीदवारों के नाम तीन सूची में जारी किए गए। 71 वर्तमान विधायकों में से 22 को टिकट नहीं देने का फैसला लिया गया। दरअसल, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सामने सत्ता विरोधी लहर से निपटने की भी चुनौती है, क्योंकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद दूसरी बार चुनावी मैदान में सीएम बनने के लिए ताल ठोंक रहे हैं। हालांकि, इस बार 90 सीटों के उम्मीदवारों के चयन में उनके और उनके प्रतिद्वंद्वी टीएस सिंहदेव के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की गई है।
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