सरकार फ्लिपकार्ट (Flipkart) और एमेजॉन (Amazon) जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर प्रोडक्ट्स के फेक रिव्यू (Fake Review) पर रोक लगाएगी। सरकार ने शनिवार को कहा कि वह इसके लिए एक फ्रेमवर्क बनाएगी। इसका मकसद कंज्यूमर्स को भ्रमित (Misguided) होने से बचाना है। इस बारे में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय (Ministry of Consumer Affairs) की बैठक शुक्रवार को एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) के साथ हुई। इसमें ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर फेक रिव्यू के बढ़ते चलन पर चर्चा हुई। फेक रिव्यू ऑनलाइन प्रोडक्ट्स और सर्विसेज खरीदने वाले कंज्यूमर्स को भ्रमित करता है। आधिकारिक बयान के मुताबिक, उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय अभी उन तरीकों का अध्ययन करेगा, जिसे इंडिया में ई-कॉमर्स कंपनियां अपना रही है। वह विदेश में ई-कॉमर्स कंपनियों के प्रैक्टिस का भी अध्ययन करेगा। यह भी पढ़ें : कनाडा विदेशियों के लिए एंट्री सिस्टम में बदलाव करेगा, इंडियन स्टूडेंट्स को होगा बड़ा फायदा शुक्रवार को हुई मीटिंग में कंज्यूमर फोरम, लॉ यूनिवर्सिटीज, फिक्की, सीआईआई और कंज्यूमर राइट्स एक्टिविस्ट ने भी हिस्सा लिया। चूंकि ई-कॉमर्स कंपनियों के कंज्यूमर्स के पास प्रोडक्ट्स को फिजिकली देखने या छूने का मौका नहीं होता है, जिससे वे प्रोडक्ट्स के बारे में जानने के लिए उनके प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किए गए रिव्यू को देखते हैं। दावा किया जाता है कि ये रिव्यू उन लोगों ने लिखे हैं, जिन्होंने पहले प्लेटफॉर्म से इन प्रोडक्ट्स को खरीदा है। कंज्यूमर अफेयर्स सेक्रेटरी रोहित कुमार सिंह ने कहा, "रिव्यूअर की अथेंटिसिटी और उससे जुड़े प्लेटफॉर्म की लायबिलिटी दो मुख्य मसले हैं। ई-कॉमर्स कंपनियों को यह भी बताना होगा कि वे किस तरह से सबसे ज्यादा रिलेवेंट रिव्यू को सेलेक्ट करती हैं।" शुक्रवार को हुई बैठक में शामिल करीब सभी पक्षों ने यह माना कि इस मसले के हल के लिए सही फ्रेमवर्क बनाना जरूरी है। कंज्यूमर के हित में फेक रिव्यू पर रोक जरूरी है। ई-कॉमर्स कंपनियों से जुड़े पक्षों ने दावा किया कि फेक रिव्यू को रोकने के लिए पहले से फ्रेमवर्क है। वे फेक रिव्यू पर रोक लगाती भी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई लीगल फ्रेमवर्क बनाया जाता है तो उन्हें खुशी होगी। ASCI की सीईओ मनीषा कपूर ने भ्रमित करने वाले रिव्यू के कंज्यूमर पर पड़ने वाले असर के बारे में बताया। बैठक में यह भी बताया गया कि किस तरह पेड रिव्यू और अनवेरिफायएबल रिव्यू की पहचान करना कंज्यूमर के लिए मुश्किल होता है।
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