New Labour Codes: भारत में कामकाजी महिलाओं के सामने कई तरह की मुश्किलें रहती रही हैं। जैसे कि रात में काम की मनाही, वेतन में असमानता, शिकायतों का ठीक से न सुना जाना और सुरक्षा की चिंता। नया लेबर कोड्स इन सारी समस्याओं को एक साथ दूर करता है।
सरकार ने महिलाओं की नौकरी, सुरक्षा और अधिकारों को लेकर कई बड़े बदलाव किए हैं। इनका सीधा असर करोड़ों कामकाजी महिलाओं पर पड़ेगा। आइए जानते हैं कि नए नियम श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी को कैसे मजबूत बनाते हैं और क्यों ये सुधार लंबे समय से जरूरी थे।
रात की शिफ्ट में काम की मंजूरी
पहली बार महिलाओं को सुबह 6 बजे से पहले और शाम 7 बजे के बाद भी काम करने की साफ अनुमति दी गई है। पहले कई राज्यों में महिलाओं का नाइट शिफ्ट में काम करना या तो मना था या बेहद सीमित था। इसके चलते से वे IT, हेल्थकेयर, हॉस्पिटैलिटी, एयरलाइंस, ई-कॉमर्स और BPO जैसी इंडस्ट्री में बराबरी से हिस्सा नहीं ले पाती थीं।

अब नया कोड कहता है कि अगर महिला की सहमति हो, तो कंपनी उसे रात की शिफ्ट में रख सकती है। इसके बदले कंपनी को सुरक्षित ट्रांसपोर्ट, निगरानी और बाकी सुरक्षा इंतजाम करना अनिवार्य होगा। इससे महिलाओं के लिए वर्कप्लेस और भी सुरक्षित और भरोसेमंद बन सकेगा।
समान वेतन और भेदभाव पर रोक
वेजेज कोड ने एक बड़ा बदलाव किया है। अब किसी भी कंपनी को भर्ती, वेतन, प्रमोशन या नौकरी की शर्तों में पुरुष, महिला या ट्रांसजेंडर- किसी के साथ भी भेदभाव करने की इजाजत नहीं है।
भारत में कई सेक्टरों में महिलाएं समान काम करके भी कम वेतन पाती थीं। नए नियम इस अंतर को खत्म करते हैं और साफ कहते हैं कि समान काम का समान वेतन देना हर कंपनी की जिम्मेदारी है। खास बात यह है कि पहली बार ट्रांसजेंडर कर्मचारियों को भी स्पष्ट कानूनी सुरक्षा दी गई है।
शिकायत समितियों में ज्यादा महिला प्रतिनिधित्व
नए कोड्स में साफ कहा गया है कि शिकायत सुनने वाली कमेटीज में महिलाओं का पर्याप्त और बराबर प्रतिनिधित्व जरूरी होगा। इसका मतलब है कि महिलाओं की समस्याएं अब महिलाओं की मौजूदगी में ही सुनी जाएंगी। चाहे वे भेदभाव से जुड़ी हों, सुरक्षा से या व्यवहार से।
इससे वर्कप्लेस पर शिकायतों की सुनवाई अधिक संवेदनशील और निष्पक्ष होने की उम्मीद है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां महिलाएं संख्या में कम होती हैं, यह नियम उनके लिए बड़ी सुरक्षा है।

हर साल मुफ्त स्वास्थ्य जांच से बड़ी राहत
नए लेबर कोड के तहत हर कर्मचारी के लिए साल में एक बार मुफ्त हेल्थ चेकअप कराया जाएगा। यह बदलाव महिलाओं के लिए खास तौर पर मददगार है क्योंकि काम, घर और परिवार की जिम्मेदारियों के बीच वे अक्सर स्वास्थ्य जांच को टाल देती हैं।
कई बीमारियां समय पर पहचान न होने की वजह से बढ़ती हैं। जैसे कि एनीमिया, थायरॉयड, विटामिन की कमी या शिफ्ट वर्क से जुड़ी थकान। इस वार्षिक जांच से बीमारी का पता जल्दी लगेगा और समय पर इलाज मिल सकेगा।
वर्कप्लेस की महिलाओं की सुरक्षा पर जोर
ऑक्युपेशनल सेफ्टी कोड कहता है कि 500 या उससे ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनियों में सुरक्षा समितियां बनाई जाएंगी। इनमें महिला प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। इससे यह सुनिश्चित होगा कि वर्कप्लेस पर सुरक्षा इंतजाम सिर्फ कागजों पर न रहकर लगातार निगरानी में रहें।
रात की शिफ्ट में काम कर रहीं महिलाओं के लिए सुरक्षा उपायों की जिम्मेदारी भी कंपनी पर है। जैसे कि सुरक्षित ट्रांसपोर्ट, महिला सुरक्षा गार्ड, CCTV और सुपरवाइजरी प्रेजेंस। इससे महिलाओं को नौकरी चुनने में पहले से अधिक भरोसा मिलेगा।

कॉन्ट्रैक्ट वाली महिला कर्मचारियों के लिए भी ग्रैच्यूटी
कई महिलाएं परिवारिक जिम्मेदारियों के कारण लंबे समय तक एक ही नौकरी में नहीं रह पातीं और अक्सर फिक्स्ड-टर्म या कॉन्ट्रैक्ट रोजगार चुनती हैं। पहले उन्हें ग्रैच्यूटी के लिए 5 साल नौकरी करनी पड़ती थी, जो अक्सर मुमकिन नहीं होता था।
अब नया कोड साफ कहता है कि फिक्स्ड-टर्म कर्मचारी सिर्फ एक साल की सेवा के बाद ही ग्रैच्यूटी के लिए पात्र होंगे। इससे IT, BPO, शिक्षण, हॉस्पिटैलिटी और रिटेल सेक्टर की लाखों महिलाओं को सीधा लाभ मिलेगा।
क्या अब महिलाओं की नौकरी में भागीदारी बढ़ेगी?
भारत में महिलाओं की श्रम भागीदारी लंबे समय से 20–25% के बीच अटकी हुई है। अब पहली बार रात में काम की अनुमति, समान वेतन, सुरक्षा से जुड़े नियम, पारदर्शी शिकायत निवारण व्यवस्था, साल में एक बार मुफ्त स्वास्थ्य जांच और फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों को सिर्फ एक साल में ग्रैच्यूटी जैसे बड़े सुधार एक साथ लागू हुए हैं।
इन बदलावों से कार्यस्थलों पर माहौल पहले से ज्यादा सुरक्षित, स्पष्ट और भरोसेमंद बनने की उम्मीद है। इससे महिलाओं के लिए नौकरी में टिके रहना, करियर आगे बढ़ाना और नए अवसरों तक पहुंचना आसान होगा। खासकर, उन सेक्टरों में जहां वे अब तक कई तरह की बाधाओं का सामना करती रही हैं।
एक्सपर्ट का मानना है कि नई लेबर कोड्स ने महिलाओं के अधिकारों को कानूनी रूप से कहीं ज्यादा मजबूत किया है। इन सुधारों का असली प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि राज्य सरकारें इन्हें कैसे लागू करती हैं और कंपनियां इनका पालन कितनी ईमानदारी से करती हैं।
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