पिता की संपत्ति में अब बेटियों का भी बराबर का हक है। सरकार ने इस बारे में 2005 में कानून में संशोधन किया था। इसके बावजूद इस बारे में लोगों को काफी उलझन है। लड़कियां समाज में आम तौर पर पिता की प्रॉपर्टी में दावा करने से संकोच करती हैं। इससे कानून में संसोधन के बावजूद उन्हें अपना हक नहीं मिल पाता है। आइए जानते हैं इस बारे में क्या कहता है कानून।
2005 में सरकार ने किया था कानून में संशोधन
सरकार ने समाज की बदलती आर्थिक-सामाजिक स्थितियों को देखते हुए 2005 में एक बड़ा कदम उठाया था। तब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में संशोधन किया गया था। यह नियम कहता है कि पिता की संपत्ति पर जितना हक बेटों का है, उतना ही हक बेटियों का है। दूसरा यह है कि बेटी विवाहित हो या अविवाहित उसका पिता की संपत्ति में अपने भाई जितना हक होगा। कानून में इस संशोधन से यह उम्मीद थी कि दशकों से चली आ रही सोच में बदलाव आएगा।
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पुश्तैनी संपत्ति में भी बेटियों का बराबर हक
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद बेटी का हक न सिर्फ सेल्फ-एक्वायर्ड एसेट्स में है बल्कि एनसेस्टरल प्रॉपर्टी में भी है। इसका मतलब है कि पिता ने अपनी कमाई से जो प्रॉपर्टी खरीदी है, उसमें बेटे के जितना बेटी का भी हक होगा। साथ ही अगर पिता को विरासत में कोई संपत्ति मिली है तो उसमें भी बेटी का हक होगा। यह हक उतना ही होगा जितना उस संपत्ति में बेटों का होगा। 2005 में संशोधन से पहले विरासत में मिली संपत्ति में विवाहित बेटियों का सीमित या ना के बराबर हक होता था। 2005 में इस फर्क को खत्म कर दिया गया।
पिता वसीयत में बेटी को सपंत्ति देने से इनकार कर सकता है
अगर पिता ने मौत से पहले वसीयत बनाई थी तो मामला कुछ अलग हो जाता है। पिता के वसीयत में अपनी मर्जी के मुताबिक संपत्ति का बंटवारा करने का हक है। अगर वसीयत में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पिता की मौत के बाद संपत्ति पर सिर्फ बेटों का हक होगा तो बेटियां इसे चैलेंज नहीं कर सकतीं। हालांकि, यह ध्यान में रखने वाली बात है कि यह पुश्तैनी यानी वसीयत में मिली प्रॉपर्टी पर लागू नहीं होगा। 2005 में कानून में संशोधन के बाद वसीयत में मिली संपत्ति में बेटों और बेटियों का बराबर हक होता है।
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