जियो फाइनेंशियल सर्विसेज के चेयरमैन केवी कामत ने बैंकों के बारे में बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि बैंकों को अपनी ऑपरेशनल कॉस्ट एक चौथाई फीसदी घटानी होगी। उन्होंने कहा कि इंडिया में बैंकों को अब सुस्ती से बाहर आना होगा। मनीकंट्रोल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने लता वेंकटेश से बातचीत में ये बातें कहीं। कामत वह व्यक्ति हैं, जिनका इंडिया में बैंकिंग इंडस्ट्री की सूरत बदलने में बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने करीब दो दशक तक आईसीआईसीआई बैंक का नेतृत्व किया।
बैंकों के सामने खुद को पूरी तरह से बदलने का चैलेंज
कामत (KV Kamath) ने कहा कि आने वाले दिनों में बैंक सिर्फ रिटेल कस्टमर्स को लोन देंगे। दूसरी वित्तीय संस्थाएं इंफ्रास्ट्रक्चर और कंपनियों की लोन की जरूरतें पूरी करेंगी। उन्होंने कहा, "बैंकों के प्रॉफिट का बड़ा हिस्सा उस पैसे से आता है, जो बैंकों के पास डिपॉजिट होता है। उसके बाद UPI और आज के दूसरे पेमेंट के तरीके हैं। अब सुस्ती का दौर खत्म हो रहा है। बैंकों को खुद को पूरी तरह से बदलना होगा। अब लोग सेविंग्स का पैसा फिक्स्ड डिपॉजिट में नहीं रख रहे हैं। इसलिए बैंकों को ऑपरेशनल कॉस्ट घटाना होगा। टेक्नोलॉजी का ज्यादा इस्तेमाल करना होगा और नए प्रोडक्ट्स लॉन्च करने होंगे।"
खर्च घटाए बगैर बैंकों को बिजनेस करना मुश्किल हो जाएगा
उन्होंने कहा कि आज बैंकों के सामने सबसे बड़ी समस्या कॉस्ट-टू-इनकम रेशियो को लेकर है। इसलिए जब तक बैंक अपने कॉस्ट टू-इनकम रेशियो को 25 फीसदी तक कम नहीं करते हैं उनके वजूद को लेकर खतरा बना रहेगा। उन्होंने कहा, "इसके बगैर बैंकों के लिए बिजनेस करना मुश्किल हो जाएगा। मेरा मानना है कि अगर आज किसी बैंक की ऑपरेटिंग कॉस्ट एक-चौथाई फीसदी से ज्यादा है तो फिर उस पर खतना मंडरा रहा है।"
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नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर बढ़ाना होगा फोकस
इंडिया में ब्रोकिंग बिजनेस का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले 7-8 सालों में Zerodha और Groww जैसी ब्रोकिंग फर्मों ने ब्रोकिंग इंडस्ट्री की तस्वीर पूरी तरह से बदल दी है। इसलिए अगर पुरानी संस्थाओं को अपना वजूद बचाए रखना है तो उन्हें टेक्नोलॉजी के मामले में खुद को बदलना होगा। नए प्रोडक्ट्स पेश करने होंगे। खुद को पूरी तरह से तैयार करना होगा और फिर ब्रोकिंग बिजनेस में आना होगा। फिक्स्ड डिपॉजिट में लोगों की घटती दिलचस्पी को लेकर दूसरे एक्सपर्ट्स भी बैंकों को आगाह कर चुके हैं।
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