आईपीओ पेश करने वाली कंपनियां प्रमोशनल कंटेंट पोस्ट करने के लिए फिनल्यूएंसर्स (Finfluencers) की मदद लेना चाहती हैं। यह एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) की गाइडलाइंस और नियमों का उल्लंघन है। ऐसे फिनफ्लूएंसर्स जो सेबी में रजिस्टर्ड नहीं हैं, उन्हें ऐसे कंटेंट प्रमोट करने के लिए कहा जाता है जिसमें आईपीओ को निवेश का बड़ा मौका बताया जाता है। ऐसे कंटेंट्स में इन शेयरों को मल्टीबैगर अपॉर्चुनिटीज के रूप में पेश किया जाता है। कंपनियां एजेंट के जरिए करती हैं संपर्क एक फिनफ्लूएंसर्स ने बताया कि कंपनियां चाहती हैं कि हम #ad लगाए बगैर उसके आईपीओ के बारे में बात करें। यह ASCI की गाइडलाइंस के खिलाफ है, जिसमें कहा गया है कि सोशल-मीडिया इनफ्लूएंसर्स को ऐसे डिसक्लोजर लेवल का इस्तेमाल करना होगा, जिससे यह पहचान हो जाए कि यह कंटेंट एडवर्टाइजमेंट का हिस्सा है। आईपीओ पेश करने वाली कंपनियों फिनफ्लूएंसर्स को सीधे एप्रोच नहीं करती हैं। वे यह काम एजेंट या एजेंसी के जरिए करती हैं। यहां तक कि पेमेंट भी उन्हीं के जरिए होता है। बढ़ रही फिनफ्लूएंसर्स के प्रमोशनल कंटेंट की डिमांड कंटेंट तैयार करने वाले लोगों का कहना है कि पिछले कुछ महीनों में ऐसे रिक्वेस्ट की संख्या बढ़ी है। सामान्य कंटेंट तैयार करने की जो फीस मिलती है, उसके मुकाबले आईपीओ से जुड़े कंटेंट के लिए 20-40 फीसदी ज्यादा फीस दी जाती है। कई बार तो ब्रोकर्स जो आईपीओ की प्रक्रिया से जुड़े होते हैं वे भी इश्यू को प्रमोट करने के लिए एजेंट्स के जरिए फिनफ्लूएंसर्स से संपर्क करते हैं। कंटेंट क्रिएटर्स को प्रति ट्वीट 50,000 रुपये और प्रति वीडियो 10 लाक रुपये तक ऑफर किए जाते हैं। अगर कंटेंट क्रिएटर्स आईपीओ के बारे में लिखने में एक्सपर्ट हो जाता है तो यह फीस बढ़ जाती है। फिनफ्लूएंसर्स के कंटेंट ज्यादा असरदायक आईपीओ के बारे में बातचीत करने के लिए सस्ते बोट्स (Bots) का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन उसका खास असर नहीं दिखता है। इसी वजह से कंपनियां आईपीओ को प्रमोट करने के लिए फिनफ्लूएंसर्स की मदद लेना चाहती हैं। एक कंटेंट क्रिएटर ने बताया कि फिनफ्लूएंसर्स के कंटेंट की बदौलत स्टॉक एक ही दिन में अपर सर्किट में पहुंच जाता है। नियमों के मुताबिक आईपीओ के प्रमोशन के लिए फिनफ्लूएंसर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन, इसके लिए तय शर्तों का पालन करना जरूरी है। ASCI की गाइडलांस में इसके लिए डिसक्लोजर लेवल के इस्तेमाल की बात कही गई है। एएससीआई का कहना है कि अगर इवैल्यूएशंस किसी पक्ष की तरफ झुका नहीं है तो भी डिसक्लोजर बहुत जरूरी है।
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