दवाईं की दुकानों की तो कमी नहीं है देश में लेकिन गरीब के बुरे वक्त में यहां इंसानियत ढूंढना भगवान ढूंडने से कम नही होता है। एक बुजुर्ग इंसान को अपनी पत्नी के लिए दवाईयां खरीदते वक्त पैसों की कमी के चलते बेबस होते देख 16 साल के अर्जुन देशपांडे को झकझोर कर रख दिया। ,हार्ट, न्यूरोलॉजिकल या कैंसर जैसी बड़ी बिमारियों में दवाईयों का खर्च हर महीने 15-20 हजार तक जाता हो, तो एक माध्यम वर्गीय परिवार कैसे अपना इलाज करवाएं । क्या सच में दवाईयां इतनी महंगी है, अगर है तो क्यों है? ऐसे कितने लोग होंगे जो पैसों की कमी के चलते अपनी जान गवा देते होंगे, क्या है इस दिक्कत का कुछ समाधान निकल सकता है, क्या इस क्षेत्र में इनोवेशन लाया जा सकता है? इन सवालों से परेशान अर्जुन देशपांडे को इसका जवाब मिला जेनरीक मेडीसिन के रुप से तो सबसे पहले समझते है जेनेरिक मेडिसिन क्या होता है? और जेनेरिक दवा और ब्रांडेड दवा में क्या अंतर है? रिसर्च से बनाई मेडिसिन के पेंटेंट होते है, पेटेंट की एक्सपायरी के बाद उस फॉर्मुले से कोई भी मैन्यूफैक्चरर दवाईयां बना सकता है, जेनेरिक दवा वह दवा है जो बिना किसी पेटेंट के बनाई और distribute की जाती है। बड़ी फार्मा कंपनियां ब्रांडेड दवाईयां मनचाहे भाव पर बेचते है और वहीं जेनेरिक मेडिसिन सस्ते में बिकती है। अर्जुन ने सोच लिया लगभग 80 % कम दामों की जेनेरिक मेडिसिन को आम आदमी की पहुंच में लाना है । pharmacy-aggregator model पर अर्जुन ने जेनरीक आधार pharma STARTUP की शुरूआत की, और महज 3 सालों में 150 शहरों में 2000 से ज्यादा फ्रैंचाइजी स्टोर्स शुरू हो चुके है। सस्ते और सबसिडरी मिलने वाले जनरीक मेडिसिन की आज देश में जरूरत है, भारत जेनेरिक दवाओं का दुनिया का दूसरा बड़ा उत्पादक है। 80% जेनेरिक दवाओं का उत्पादन करने के बावजूद अधिकतर एक्सपोर्ट होता आया है। इसलिए भारत में generic दवाईयाों की उपलब्धता आबादी की जरुरत के मुकाबले काफी कम थी। ऐसे में अर्जुन ने ना सिर्फ generic medical स्टोर शुरू किए बल्की इस कारोबार के लिए जरूरी इकोसिस्ट बनाने पर फोकस किया। देश के हर आम आदमी तक पहुंच बनाने के मिशन पर निकले अर्जून ने जेनरीक आधार के स्टोर्स में लुक और डिजाइन से ज्यादा दवाईयों की availablity पर ध्यान दिया, साथ ही फ्रेंचाइजी को हर तरह का सपोर्ट देने पर कंपनी ने जोर दिया। जेनरीक आधार की फ्रेंचाइजी को इन्वेंटरी की कमी कभी भी नहीं खलती क्योंकी कंपनी दवाईयों की मैन्यूफैक्चरिंग अपने ब्रांड के तहत करवा कर लेती है। कंपनी ने महज 3 साल में अपनी पहुंच बड़े शहरों के अलावा त्रिपुरा, झारखंड, उड़ीसा, बिहार जैसे राज्यों के इंटिरियर तक बनाई है, इस तेज तर्रार ग्रोथ के पिछे फाउंडर की मेहनत, जनरेकी मेडीसिन की जरुरत और उपलब्धता का अंदाजा लगाया जा सकता है। शुरू होने के बाद जेनरीक आधार का स्केल ऑर्गेनिक ग्रोथ से ही हुआ है क्योंकी आज का ग्राहक जागरूक है। 16 साल के अर्जून देशपांडे ने महज 15 हजार के स्टार्टअप कैपिटल से जेनरीक आधार की नींव रखी लेकिन आज भारत की फार्मा इंडस्ट्री में कंपनी 8000-10000 लोगों को employment जनरेट कर रही है, और गरिबों तक किफायती दामों में दवाईयां मुहय्या कर पा रही है। फार्मा सेक्टर में इनोवेशन ला रहे इस यंग फाउंडर को रतन टाटा जैसे अनुभवी बिजनेसमैन और इन्वेस्टर का साथ मिला। अर्जून के इस वेंचर को राज्य सरकारों का बढ़िया सपोर्ट मिल रहा है, हालही में उत्तर प्रदेश सरकार से 700 stores के लिए कंपनी MOU साइन कर चुकी है, आने वाले 2 सालों में देश के 400 शहरों में 5000 फ्रेंचाइजी शुरू करने का कंपनी का लक्ष्य है। साथ ही कैंसर मेडीसिन को जेनरीक कैटेगरी में ला कर कैंसर पिढितों को इलाज में फाइनेंशियल राहत पहुंचाने पर काम जारी है। इतना ही नही भारत की जनता के लिए किफायती दवाईयां पहुंचाने के मिशन के साथ साथ अर्जून जनरेकी आधार के तर्ज पर veterinary GENERIC medical store की चेन शुरू करने की और आगे बढ़ रहे है। यंग आंत्रप्रेन्योर @arjundeshpande9 ने महज 16वें साल में शुरू की फार्मा-टेक कंपनी @aadhaar_generic , आज बन चुकी है ₹500 करोड़ की कंपनी, सस्ती दवाईयां घर-घर तक पहुंचाने के अर्जुन के मिशन का क्या है अगला बड़ा पड़ाव देखिए #AwaazEntrepreneur में। @AEHarshada @KalpitaParkar pic.twitter.com/nYUoJ6WdOE — CNBC-AWAAZ (@CNBC_Awaaz) February 25, 2023
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