इस साल फरवरी के मौसम ने लोगों को डरा दिया है। महीने की शुरुआत में ही ठंड रफूचक्कर हो गया। गर्मी लगनी शुरू हो गई। पिछले कई दिनों से लगातार फरवरी के मौसम को लेकर तरह-तरह की खबरें आ रही हैं। इस साल के अंत में El Nino के असर के अनुमान ने चिंता और बढ़ा दी है। माना जा रहा है कि अल निनो की वजह से मानसून (Monsoon) की बारिश प्रभावित हो सकती है। इससे खरीफ फसलों का उत्पादन घट सकता है। पिछले कुछ सालों खासकर कोरोना की महामारी जब चरम पर थी, तब कृषि क्षेत्र ने इकोनॉमी की काफी मदद की थी। कृषि क्षेत्र में उत्पादन घटने का असर आबादी के बड़े हिस्से पर पड़ता है। अल नीनो क्या है? आखिर यह अल नीनो क्या है? आखिर हमें फरवरी में अप्रैल-मई जैसी गर्मी क्यों महसूस हो रही है? आम तौर पर फरवरी का मौसम ठंडा होता है। 9 फरवरी को अमेरिकी नेशनल ओसेनिक एंड एटमॉस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) ने इस साल अल नीनो के असर का पूर्वानुमान व्यक्त किया है। माना जा रहा है कि इसका असर मानसून सिस्टम पर पड़ेगा। इससे पहले लगातार तीन साल ला नीना का असर रहा है। किसने जताया अल नीनो का अनुमान? NOAA अमेरिकन साइंटिफिक एजेंसी है। यह यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स के तहत आता है। यह समुद्र की स्थितियों, प्रमुख जलमार्गों और वातावरण से जुड़ी घटनाओं पर रिसर्च करता है और अपनी रिपोर्ट देता है। आम तौर पर सेंट्रल एवं ईस्टर्न ट्रॉपिकल पैसिफिक ओशन के गर्म होने को अल नीनो कहा जाता है। अल नीनो का शाब्दिक अर्थ छोटा स्पैनिश लड़का होता है। मौसम में किस तरह का बदलाव आ सकता है? अल नीनो की वजह से दुनियाभर के मौसम में बदलाव आ सकता है। इसमें इंडिया का साउथवेस्ट मानसून भी शामिल है। अल नीनो आम तौर पर साल के अंत में अपने चरम पर होता है। इसे चलते मौसम सूखा हो सकता है और मानसून में कम बारिश हो सकती है। अल नीनो के ठीक उलट है ला नीना। इसका मतलब है कि छोटी स्पैनिश लड़की। दोनों के असर भी विपरीत होते हैं। ला नीना की वजह से मौसम ठंडा हो सकता है। ज्यादा बारिश हो सकती है। अभी हम ला नीना के प्रभाव में हैं। यह इसके असर का लगातार तीसरा साल है। इंडिया पर पड़ेगा क्या असर? इस साल अल नीनो के पूर्वानुमान से काफी चिंता पैदा हुई है। माना जा रहा है कि अगर इसका असर मानसून पर पड़ता है तो कृषि उत्पादन में कमी आ सकती है। यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा। दरअसल, अब भी इंडिया में धान सहित कई फसलों के लिए मानसून की बारिश जरूरी है। अच्छी बारिश नहीं होने पर ये फसलें खराब हो सकती हैं। कंपनियां क्यों चिंतित हैं? महाराष्ट्र सरकार ने सूखे जैसी स्थितियों की चेतावनी दी है। उधर, कंपनियों की चिंता इस बात को लेकर है कि अगर मानसून में बारिश कम होती है तो इसका असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है। कोरोना की महामारी के बाद शहरी अर्थव्यवस्था तो पटरी पर आ चुकी है। लेकिन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पर्याप्त रिकवरी नहीं दिख रही है। ग्रामीण इलाकों में मांग कमजोर बनी हुई है। इसका असर कंपनियों की कुल बिक्री पर भी पड़ रहा है। रेटिंग एजेंसी CRISIL ने अल नीनो के पूर्वानुमान पर लगातार नजरें रखने की सलाह दी है।
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