पिछले कुछ हफ्तों से ऑयल कंपनियों (Oil Marketing Companies) ने पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) के प्राइस नहीं बढ़ाए हैं। इसके बावजूद ज्यादातर शहरों में दोनों फ्यूल 100 रुपये से ज्यादा भाव पर बिक रहे हैं। दिल्ली में पेट्रोल 105 रुपये बिक रहा है। मुंबई में इसका भाव 120 रुपये है। पेट्रोल सबसे महंगा 122.93 रुपये प्रति लीटर राजस्थान के श्रीगंगानर में है। यह सबसे सस्ता पोर्ट ब्लेयर में हैं, जहां इसका प्राइस 91.45 रुपये प्रति लीटर है। यही हाल डीजल का है। देश में राजस्थान के श्रीगंगानर में डीजल का भाव सबसे ज्यादा 105.34 रुपये प्रति लीटर है। सबसे कम भाव पोर्ट ब्लेयर में है, जहां यह 85.83 रुपये प्रति लीटर की दर से बिक रहा है। महंगे फ्यूल ने परिवार का बजट बिगाड़ दिया है। इसके भाव जल्द गिरने की उम्मीद नहीं दिख रही। यह भी पढ़ें : 5G Auction: कब शुरु होगी 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी? केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी अहम जानकारी पिछले साल नवंबर में महंगे पेट्रोल-डीजल से लोगों को राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने पेट्रोल की एक्साइड ड्यूटी में 5 रुपये और डीजल की एक्साइज ड्यूटी में 10 रुपये प्रति लीटर की कमी की थी। इसके बाद भाजपा शासित राज्यों मसलन यूपी, गुजरात, कर्नाटक और हरियाणा सहित कई राज्यों ने फ्यूल पर वैट घटा दिए थे। इससे लोगों को बहुत राहत मिली थी। इंडिया अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी फ्यूल इंपोर्ट करता है। इंडिया में आयातित क्रूड का भाव प्रति लीटर 49.33 रुपये पड़ता है। यहां क्रूड की रिफाइनिंग होती है। इस पर प्रति लीटर करीब 7.25 रुपये का खर्च आता है। फिर पेट्रोल पर केंद्र सरकार करीब 28 रुपये की एक्साइज ड्यूटी लगाती है। फिर इसमें 3.80 रुपये प्रति लीटर का डीलर कमीशन जोड़ा जाता है। इसके बाद राज्य सरकार इस पर वैट लगाती है। इसकी दर भी अलग-अलग राज्य के हिसाब से अलग-अलग है। दिल्ली में 17,13 रुपये प्रति लीटर का वैट लगता है। इससे पेट्रोल की कीमत बढ़कर 105 रुपये पहुंच जाती है। डीजल के मामले में भी यही बात लागू होती है। केंद्र और राज्य सरकारों के टैक्स की वजह से इसके भाव दोगुने हो जाते हैं। पिछले साल क्रूड में तेजी का सिलसिला शुरू हुआ था। इसकी वजह यह थी कि कोरोना की मार से बेहाल इकोनॉमी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही थी। मांग बढ़ने से क्रूड के दाम बढ़ने लगे। पिछले साल की शुरुआत में क्रूड का भाव 51.8 डॉलर प्रति बैरल था। यह बढ़कर जून-जुलाई तक 76 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया। फिर, इस साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से इसका भाव तेजी से बढ़ा। ऑयल कंपनियां पेट्रोल और डीजल के भाव की समीक्षा रोज करती हैं। लेकिन, देश में चुनाव के दौरान कंपनियां फ्यूल के दाम नहीं बढ़ाती हैं। इस साल भी पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले ही ऑयल कंपनियों ने भाव बढ़ाना रोक दिया। फिर, पिछले महीने के अंतिम हफ्ते से कीमतों में इजाफा करना शुरू किया।
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