म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री ब्लॉक डील में बायर और सेलर के नाम बताए जाने के पक्ष में नहीं है। हाल में म्यूचुअल फंडों के प्रतिनिधियों ने सेबी की तरफ से नियुक्त वर्किंग ग्रुप को इस बारे में बताया। सेबी ने ब्लॉक डील के नियमों की समीक्षा के लिए यह वर्किंग ग्रुप बनाया है। मार्केट रेगुलेटर ब्लॉक डील के मौजूदा नियमों में बदलाव करना चाहता है। वर्किंग ग्रुप की सिफारिशों पर विचार के बाद वह इस बारे में अंतिम फैसला लेगा।
डिसक्लोजर्स का असर शेयर की कीमतों पर पड़ने का डर
म्यूचुअल फंड के प्रतिनिधियों का कहना था कि ब्लॉक डील (Block Deals) में बायर्स और सेलर्स के बारे में डिसक्लोजर का कोई फायदा नहीं होता। इसके उलट इससे संबंधित स्टॉक में लिक्विडिटी पर खराब असर पड़ सकता है। एक फंड मैनेजर ने कहा, "जैसे ही ब्लॉक डील से जुड़े नामों का ऐलान होता है, दूसरे मार्केट पार्टिसिपेंट्स ट्रेंड फॉलो करने लगते हैं। इसका असर उस स्टॉक की कीमत और सप्लाई दोनों पर पड़ता है। कई बार ट्रांजेक्शन एक ब्लॉक डील में पूरा नहीं होता है। इससे कई ब्लॉक डील करनी पड़ती है। लेकिन, जैसे ही इस बारे में खबर बाहर आती है, स्ट्रेटेजी फेल कर जाती है।"
संस्थागत निवेशकों की स्ट्रेटेजी रिटेल इनवेस्टर्स से अलग
एक दूसरे फंड मैनेजर ने कहा कि इंस्टीट्यूशन इनवेस्टर्स के पास अक्सर इनवेस्टमेंट की टाइमलाइन होती है। उनकी स्ट्रेटेजी रिटेल इनवेस्टर्स से पूरी तरह से अलग होती है। उन्होंने कहा, "ये छोटे और स्कीम लेवल ट्रांजेक्शन शायद ही कभी कंपनी पर बड़ा असर डालते हैं, लेकिन इनके बारे में भी एक ही तरह के डिसक्लोजर के नियम लागू होते हैं, जिससे कंप्लायंस का बोझ बढ़ जाता है, जबकि इससे कोई फायदा नहीं होता।" लेकिन, कुछ मार्केट पार्टिसिपेंट्स की राय म्यूचुअल फंड के प्रतिनिधियों की राय से अलग है।
कई मार्केट पार्टिसिपेंट्स डिसक्लोजर का नियम जारी रखने के पक्ष में
केजरीवाल इनवेस्टमेंट एंड रिसर्च सर्विसेज के फाउंडर अरुण केजरीवाल ने कहा कि सेबी को म्यूचुअल फंडों की सलाह पर ध्यान नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि ब्लॉक डील से जुड़े डिसक्लोजर के नियम पिछले कई सालों से लागू हैं। ये अच्छी तरह से काम कर रहे हैं। पारदर्शिता के लिए इन्हें बनाए रखा जाना चाहिए। बीएसई ब्रोकर्स फोरम (BBF) का भी मानना है कि ब्लॉक डील से जुड़े बायर और सेलर के नामों के बारे में डिसक्लोजर के नियम को जारी रखा जाना चाहिए।
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