Monday, October 7, 2024

PM Modi 23-Year Journey: गुजरात से लेकर दिल्ली तक लोकसेवा, संवैधानिक पद पर पीएम मोदी ने पूरे किए 23 साल

PM Narendra Modi 23-Year Journey: गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर भारत के प्रधानमंत्री के रूप में सार्वजनिक जीवन में पीएम नरेंद्र मोदी के 23 साल पूरे हो गए हैं। पीएम मोदी सोमवार यानी 7 अक्टूबर 2024 को सत्ता के शीर्ष पर अपने 23 साल पूरे किए। पीएम मोदी ने 7 अक्टूबर 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। 2014 में प्रधानमंत्री बनने से पहले वह 13 साल तक इस पद पर बने रहे। उन्होंने इस साल जून में लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। पिछले 23 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व परिवर्तन का प्रतीक रहा है। उन्होंने पहले गुजरात को पुनर्जीवित किया और फिर भारत को प्रगति के अभूतपूर्व पथ पर अग्रसर किया।

पहले 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री का पद संभाला तो पिछले लगभग साढ़े 10 साल से प्रधानमंत्री का पद संभाल रहे हैं। मुख्यमंत्री रहते पीएम मोदी ने गुजरात को देश में नई पहचान दिलाई तो प्रधानमंत्री रहते दुनिया में देश का नाम रोशन किया। दो दशक से अधिक के अपने कार्यकाल में पीएम मोदी की पहचान पहले राज्य को देश में सबसे आगे ले जाने फिर देश को दुनिया में सबसे आगे ले जाने वाले प्रशासक के तौर पर हुई। 23 साल के इस सेवाकाल के दौरान पीएम मोदी को दुनियाभर के तमाम देशों द्वारा अनेक सर्वोच्च पुरस्कार भी मिलें।

गुजरात को संकट से निकाला

1980 के दशक के मध्य में गुजरात ने 1985 से 1987 तक लगातार तीन सूखे के साथ एक अभूतपूर्व संकट का सामना किया। उस वक्त राज्य की स्थिति काफी भयावह थी। 18,000 गांवों में से 11,000 में पीने का पानी नहीं था। घास के मैदानों की कमी के कारण हजारों पशु मर गए। साथ ही फसलें खराब होने के कारण लोग बेहतर अवसरों की तलाश में राज्य से बाहर जाने लगे। गुजरात की अर्थव्यवस्था लगभग ध्वस्त हो गई थी, क्योंकि कृषि संकट ने ग्रामीण आजीविका को पंगु बना दिया था।

2001 में हताशा और निराशा की इस पृष्ठभूमि के खिलाफ नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला। उनका पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य राज्य की गंभीर जल कमी से निपटना और इसकी अपंग अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना था। पीएम मोदी ने जल संरक्षण और प्रबंधन पर केंद्रित एक अभूतपूर्व पहल सुजलाम सुफलाम योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत राज्य की साल भर की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए नहरों, चेक डैम और जलाशयों का एक जटिल नेटवर्क बनाया गया था।

इस परियोजना ने न केवल भूजल स्तर को फिर से भर दिया, बल्कि गुजरात को पानी की अधिकता भी दी। इससे राज्य की किस्मत बदल गई। इसके अलावा, पीएम मोदी के विकेंद्रीकृत शासन पर जोर ने स्थानीय समुदायों को जल संसाधनों का स्वामित्व लेने का अधिकार दिया, जिससे दीर्घकालिक स्थिरता के लिए आधार तैयार हुआ। एक और महत्वपूर्ण हस्तक्षेप ज्योतिग्राम योजना थी, जिसने ग्रामीण गुजरात को 24 घंटे बिजली प्रदान की। इसने कृषि क्षेत्र को बदल दिया, जिससे किसानों को पानी के पंप की सुविधान मिली।

साथ ही छोटे पैमाने के उद्योगों को भी बढ़ावा मिला। इस दौरान मोदी के नेतृत्व ने न केवल राज्य के तात्कालिक जल और ऊर्जा संकट को हल किया, बल्कि गुजरात के आर्थिक पुनरुत्थान की नींव भी रखी। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के कार्यकाल ने महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के माध्यम से एक अमिट छाप छोड़ी, जिसमें विकास को दूरदर्शी शासन के साथ जोड़ा गया। 2003 में शुरू किया गया वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन वैश्विक निवेश को आकर्षित करने का एक मंच बन गया।

मोदी ने गुजरात को एक निवेशक-अनुकूल राज्य के रूप में स्थापित किया। जब तक उन्होंने पद छोड़ा, तब तक शिखर सम्मेलन ने अरबों डॉलर की निवेश जुटाईं, जिससे राज्य एक औद्योगिक महाशक्ति में बदल गया। साबरमती रिवरफ्रंट जैसी परियोजनाओं ने उपेक्षित क्षेत्रों को समृद्ध सार्वजनिक स्थानों में बदल दिया, जिससे पर्यटन और शहरी विकास दोनों को बढ़ावा मिला। रिवरफ्रंट ने न केवल शहर के सौंदर्य को बढ़ाया, बल्कि व्यवसायों, आयोजनों और त्योहारों को आकर्षित करके स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी पुनर्जीवित किया।

2014 से पहले और बाद का भारत

2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। UPA सरकार के दौर में भारत महंगाई और सुस्त अर्थव्यवस्था से जूझ रहा था। 2G स्पेक्ट्रम घोटाले और कोयला आवंटन घोटाले जैसे भ्रष्टाचार घोटालों ने सरकार में जनता के भरोसे को बुरी तरह से कम कर दिया था। आर्थिक विकास में काफी कमी आई थी। इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में देरी हो रही थी। निवेशकों का भरोसा कम हो था। कारोबारी माहौल नौकरशाही बाधाओं और लालफीताशाही से प्रभावित था। देश व्यापक गरीबी से ग्रस्त था, जिसमें अक्सर बिजली की कमी आर्थिक विकास में एक बड़ी बाधा के रूप में काम करती थी। गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा दुर्गम थी। मेडिकल खर्च लाखों परिवारों को गरीबी में धकेल रहा था।

लेकिन जब नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने भारत के पुनर्निर्माण का एक बड़ा काम शुरू किया। उनकी सबसे दूरगामी पहलों में से एक 'डिजिटल इंडिया' मिशन था, जिसका उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज में बदलना था। इंटरनेट एक्सेस, डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सरकारी सेवाओं के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करके PM मोदी ने लाखों नागरिकों को डिजिटल दायरे में लाया, जिससे ई-गवर्नेंस अधिक सुलभ और पारदर्शी हो गया।

'स्वच्छ भारत' अभियान ने पूरे देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता में क्रांति ला दी। इस विशाल स्वच्छता अभियान ने 100 मिलियन से अधिक शौचालयों को सुलभ बनाया। गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया। समग्र स्वास्थ्य में सुधार किया और खराब स्वच्छता से संबंधित बीमारियों को काफी हद तक कम किया।

'पीएम-किसान सम्मान निधि' के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने 11 करोड़ किसानों को आय सहायता प्रदान करके किसानों की दुर्दशा को सीधे कम किया। यह भारत के कृषि समुदाय के लिए एक बड़ा बदलाव था, जिसने कर्ज के दबाव को कम किया। साथ ही किसानों को अपनी फसलों के लिए बेहतर संसाधनों में निवेश करने में सक्षम बनाया।

पीएम आवास योजना ने 4 करोड़ से अधिक घर बनाए हैं, जिससे लाखों भारतीयों को सुरक्षित, किफायती आवास मिले हैं। इस पहल के तहत, भारत के गरीबों के लिए आवास अब दूर का सपना नहीं रह गया है, क्योंकि किफायती और सतत विकास पर सरकार के फोकस ने उन्हें अपना घर खरीदने का साधन दिया है।

भारत में स्वास्थ्य सेवा में दुनिया के सबसे बड़े सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम 'आयुष्मान भारत' की शुरुआत के साथ क्रांतिकारी बदलाव आया। 50 करोड़ से अधिक नागरिकों को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा प्रदान करते हुए, आयुष्मान भारत ने लाखों परिवारों को बेहतर इलाज और सर्जरी की भारी लागत से बचाया है। इस योजना से यह सुनिश्चित हुआ है कि स्वास्थ्य सेवा एक विशेषाधिकार के बजाय एक मौलिक अधिकार है।

ये भी पढे़ं- Haryana-J&K Election 2024 Result Date & Time: कब और कहां देखें हरियाणा और जम्मू-कश्मीर चुनाव के नतीजे? यहां जानें सबकुछ

'मेक इन इंडिया' के साथ, पीएम मोदी ने भारत को ग्लोबल मैन्यूफैक्चिंग सेंटर में बदलने, स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया। इस पहल ने इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और डिफेंस मैन्यूफैक्चिंग जैसे क्षेत्रों को पुनर्जीवित किया है, जिससे निर्यात और विदेशी निवेश में वृद्धि हुई है।

भारत के 'आत्मनिर्भर भारत' के दृष्टिकोण के अनुरूप, भारत की मैन्यूफैक्चिंग क्षमताओं को बढ़ावा देने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपये (26 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक) के निवेश के साथ 14 प्रमुख क्षेत्रों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की गई हैं। हाल ही में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 700 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है। जबकि 2013-14 में भारत का विदेशी भंडार 300 बिलियन डॉलर से कम था।



from HindiMoneycontrol Top Headlines https://ift.tt/Zs1oRHy
via

No comments:

Post a Comment