इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की शानदार सफलता के बाद, अब अपनी खोज का दायरा और बढ़ा रही है। ISRO का नया मिशन आदित्य-एल1 (Aditya-L1), 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से लॉन्च होने वाला है। यूं तो ये भारत का पहला सोलर मिशन (Solar Mission) या कहें कि सूर्य मिशन है, लेकिन ऐसा करने वाला भारत पहला देश नहीं है। भारत से पहले भी सूरज के भीतर छिपे रहस्यों की खोज में अमेरिका, यूरोपियन स्पेस एजेंसी और जापान जुटे हैं। ऐसा करने वाला भारत चौथा देश है। फिलहाल कई मिशन ऐसे हैं, जो सूरज और उससे जुड़े कई सवालों के जवाब खोज रहे हैं। ये सभी मिशन अमेरिका की स्पेस एजेंसी-NASA, यूरोपियन स्पेस एजेंसी और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) की निगरानी में चल रहे हैं। आइए डालते हैं, इन सभी मिशन पर एक नजर- 1. SOHO (सोलर और हेलियोस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी) देश: यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और अमेरिका की NASA का एक ज्वाइंट मिशन। लॉन्च: 2 दिसंबर, 1995, हालांकि, 2000 के दशक में चालू हुआ। मिशन का मकसद: सूरज के अंदरूनी हिस्से, बाहरी वातावरण और सोलर विंड का अध्ययन करना। 2. STEREO (सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेशन ऑब्जर्वेटरी) देश: अमेरिका, NASA लॉन्च: 25 अक्टूबर 2006 मिशन का मकसद: सूरज के स्टीरियोस्कोपिक ऑब्जर्वेशन देकर, कोरोनल मास इजेक्शन समेत सूरज पर होने वाली दूसरी घटनाओं का अध्ययन करना। 3. Hinode (Solar B) देश: जापान, JAXA ने अंतराष्ट्रीय सहयोग से ये मिशन किया। लॉन्च: 22 सितंबर 2006 मिशन का मकसद: सूरज के मैग्नेटिक फील्ड और सोलर एटमॉस्फेयर पर इसके असर का अध्ययन करना। 4. SDO (सोलर डायनेमिक्स ऑब्जर्वेटरी) देश: अमेरिका, NASA लॉन्च: 11 फरवरी, 2010 मकसद: सूरज के मैग्नेटिक फील्ड, सोलर एक्टिविटी और स्पेस वेदर पर प्रभाव को समझने के लिए अलग-अलग वेवलेंथ में सूरज का निरीक्षण करना। 5. ISRIS (इंटरफोस रीजन इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ) देश: अमेरिका, NASA लॉन्च: 28 जून 2013 मकसद: इस रीजन के डायनमिक्स को समझने के लिए सूरज के फोटोस्फेयर और कोरोना के बीच इंटरफेस का अध्ययन करना। 6. सोलर ऑर्बिटर देश: NASA के सहयोग से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) का मिशन लॉन्च: 9 फरवरी, 2020 मकसद: सूरज और पृथ्वी के बीच संबंध को समझने के लिए सूर्य के पोलर रीजन और सोलर विंड का अध्ययन करना। 7. पार्कर सोलर प्रोब देश: अमेरिका, NASA लॉन्च: 12 अगस्त, 2018 मकसद: किसी भी पिछले मिशन की तुलना में सूरज के सबसे करीब पहुंचना, उसके बाहरी वातावरण और सोलर विंड का अध्ययन करना। जब बात सूरज की हो तो ये खुद में ही एक चुनौती पूर्ण हो जाता है। ऐसे में इन सभी मिशन की सफलताओं की बात करें, तो विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक डॉ. टीवी वेंकटेश्वरन ने कहा कि पिछले सभी सूर्य मिशन सफल रहे हैं। उनका कहना है, "इसमें चंद्रयान की तरह लैंडिंग का कोई मसला ही नहीं है, क्योंकि स्पेसक्राफ्ट को धरती और सूरज के बीच किसी एक प्वाइंट में स्थापित करना ही एक बड़ी चुनौती है। इसलिए सभी पुराने मिशन सफल रहे हैं।" अब सवाल ये उठता है कि जब कई बड़े देश सूर्य यान भेज चुके हैं, तो ऐसे में भारत का सोलर मिशन आदित्य-एल1 कितना अलग है। इसके जवाब में डॉ. वेंकटेश्वरन ने कहा कि सैद्धांतिक तौर पर भारत के आदित्य सूर्य यान में लगभग सभी कुछ पुराने मिशन जैसा ही है। Aditya L1 Mission: अंतरिक्ष में जिस तूफान ने तबाह की मस्क की सैटेलाइट, उसी जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म का अध्ययन करेगा आदित्या-एल1 उन्होंने तकनीकि बदलाव को समझाते हुआ कहा, "उस समय की क्षमताओं के आधार पर खोज और अध्ययन सीमित थे। इसलिए हमारा सूर्य यान आज के दौर के मुताबिक काफी एडवांस है।" उन्होंने आगे बताया कि भारत के आदित्य-एल1 में विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC) नाम का एक पेलोड है, जो दूसरे सूर्य यान में नहीं था। सूरज के एटमॉस्फेयर के तीन भाग हैं - फोटोस्फेयर, जो सतह की परत है। दूसरा है सोलर एटमॉस्फेयर, जिसमें क्रोमोस्फेयर और कोरोना शामिल हैं। VELC सूरज के एटमॉस्फेयर के सबसे बाहरी हिस्से कोरोना का अध्ययन करेगा। इसे बेंगलुरु में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) ने डेवलप किया है।
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