डेरिवेटिव मार्केट (Derivative market) में आए निवेशकों के नए वर्ग को एक अलग तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। यह समस्या बीएसई पर ट्रेडिंग करने में बाधा पैदा कर रही है। दरअसल, अपनी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी को टेस्ट करने के लिए उन्हें भरोसेमंद डेटा नहीं मिल रहा है। BSE ने अपने सेंसेक्स और बैंकेक्स डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स को दोबारा 15 मई को लॉन्च किया। इसका मकसद डेरिवेटिव ट्रेंडिंग को बढ़ाना है। इसके लिए उसने नई एक्सपायरी साइकिल के लिए छोटे लाइज पेश किए हैं। हालांकि, करीब सभी हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडर्स (HFTs) ने बताया कि जब तक वॉल्यूम पर्याप्त बढ़ नहीं जाता है, वे सेंसेक्स और बैंकेक्स कॉन्ट्रैक्ट्स में ट्रेड नहीं करेंगे। उनका कहना है कि वे बैक-टेस्ट स्ट्रेटेजी के लिए पर्याप्त अवधि के लिए डेटा के अभाव का सामना कर रहे हैं। वॉल्यूम कम होने से भी आ रही दिक्कत अभी जो हिस्टोरिकल ट्रेडिंग डेटा उपलब्ध हैं वो भरोसेमंद नहीं है। वॉल्यूम बहुत कम होना भी एक समस्या है। डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स हाई रिस्क-रिवॉर्ड इंस्ट्रूमेंट्स हैं, जिनका इस्तेमाल इक्विटी मार्केट में हेज के लिए हो सकता है। दिसंबर के लिए NSE के डेटा के मुताबिक, एक्सचेंज के कुल ट्रेड में HFT फर्मों की हिस्सेदारी 54 फीसदी थी। NSE इंडिया में होने वाले कुल डेरिवेटिव ट्रेडिंग का 99 फीसदी हैंडल करता है। यह भी पढ़ें : LIC की इस पॉलिसी में मंथली 7960 रुपये निवेश किया तो मैच्योरिटी पर मिलेंगे 54 लाख एल्गो फर्म का मतलब क्या है? HFT फर्म को मार्केट की भाषा में एल्गो फर्म कहा जाता है। वे बिजली की रफ्तार से ट्रेड एग्जिक्यूट करने के लिए जटिल एल्गोरिद्म और पावरफुल कंप्यूटर्स का इस्तेमाल करते हैं। वे एक के बाद एक काफी लार्ज पोजिशंस लेते हैं। इसका मकसद मार्केट मूवमेंट का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना होता है। इस मामले में बीएसई सेंसेक्स और बैंकेक्स पिछड़ जाते हैं। चूंकि, इनमें ज्यादा वॉल्यूम नहीं होता है, जिससे ट्रेडर्स चाहकर भी काउंटरपार्टी नहीं तलाश सकते। यह बैक-टेस्टिंग के लिए भरोसेमंद डेटा उपलब्ध नहीं होने के बाद दूसरी बड़ी समस्या है। बैक-टेस्टिंग पर आधारित स्ट्रेटेजी का इस्तेमाल ये ट्रेडर्स जिस स्ट्रेटेजी का इस्तेमाल करते हैं वह कई सालों के डेटा के बैक-टेस्टिंग पर आधारित है। एक बार जब स्ट्रेटेजी तैयार हो जाती है तो यह देखने के लिए इसे टेस्ट किया जाता है कि क्या यह पहले मुनाफा कमाने में मददगार रही है। अगर रिजल्ट पॉजिटिव होते हैं तो स्ट्रेटेजी को लाइव मार्केट में इस्तेमाल करने से पहले कोडिफाई किया जाता है। छत्तीसगढ़ के एक एल्गो ट्रेडर अंकुश बजाज ने कहा कि ज्यादा फुल टाइम ट्रेडर्स बैक-टेस्टिंग पर भरोसा करते हैं और वे अचानक किसी नए एसेट क्लास में ट्रेडिंग नहीं शुरू करना चाहते।
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