Opec और सहयोगी देशों ने (OPEC+ alliance) कच्चे तेल (Crude oil) के उत्पादन के निर्णय को मौजदा लेवल्स पर कोई बदलाव नहीं किया है। 23 देशों के संगठन ने अक्टूबर महीने में तेल के उत्पादन (Crude Oil Production) में रोजाना 2 मिलियन बैरल की भारी कटौती करने का निर्णय लिया था। यह कटौती अब आगे भी बरकरार रहेगी। इस कटौती से भारत सहित वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में कितना उतार-चढ़ाव आएगा अभी यह स्पष्ट नहीं है। बता दें कि हाल के दिनों में इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल के दाम (Crude oil prices in the international market) पर उठापटक देखने को मिला। चीन में कोरोना वायरस के चलते लगी पाबंदी की वजह से यह दबाव देखने को मिला है। हालांकि, चीन अस्थायी रूप से कोविड प्रतिबंधों में ढील दे रहा है, जिससे दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातक की खपत में कमी आई है। ओपेक प्लस संगठन ने कटौती का लिया था फैसला दरअसल, अक्टूबर महीने में ओपेक प्लस संगठन के 23 देशों ने उत्पादन में प्रतिदिन 20 लाख बैरल उत्पादन में कटौती करने का निर्णय लिया था। अभी यह निर्णय हाल ही में लागू हुआ है। इसके बाद कच्चे तेल के दाम में उठापटक देखने को मिली। 28 नवंबर को कच्चा तेल सितंबर के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था। वहीं, नवंबर महीने में ब्रेंट क्रूड के भाव सबसे बड़ा सप्ताहिक क्लोजिंग देखने को मिली थी। ये भी पढ़ें- Delhi Pollution: दिल्ली की हवा फिर हुई जहरीली, निर्माण कार्यों और तोड़फोड़ गतिविधियों पर लगा बैन इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों के उतार-चढ़ाव में नजर डालें तो ओपेक प्लस मेंबर्स रूस से होने वाले क्रूड इंपोर्ट पर यूरोपियन यूनियन के प्रतिबंध का काफी अहम रोल रहा है। ये प्रतिंबध सोमवार से लागू हुए हैं। इस बीच चीन कोविड से निपटने के लिए लगी हुई पाबंदियों को धीरे-धीरे हल्का कर रहा है। इससे भी कच्चे तेल के मूवमेंट पर असर पड़ा है। चीन में कच्चे तेल की खपत में आई गिरावट दरअसल, चीन में कोरोना वायरस से निपटने के लिए पिछले दिनों लगी पाबंदियों के चलते कच्चे तेल की खपत में काफी गिरावट आई है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। चीन में कोरोना पाबंदियों में ढिलाई के चलते कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आ सकती है। ये भी पढ़ें- ONGC -Oil India के लिए खट्टी-मीठी सिफारिश, कमेटी ने सरकार को भेज दी अपनी यह रिपोर्ट फिलहाल, ओपेक प्लस देशों ने कच्चे तेल के उत्पादन में मौजूदा स्तर पर बनाए रखने का निर्णय लिया है। हालांकि, अभी तक ओपेक की तरफ से इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
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