1990 के दशक में रूस के पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन (Boris yeltsin) ने मार्केट को बंदिशों से मुक्त करने और रूस को एक लोकतांत्रिक देश बनाने की कोशिशें शुरू की थी। वह सोवियत यूनियन के पूर्व राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) के ग्लासनोस्त (Glasnost) और पेरेसत्रोइका (Perestroika) के समर्थक थे। ग्लासनोस्त का मतलब है खुलापन और पेरेसत्रोइका का मतलब है पुनर्निर्माण। सोवियत रूस के विघटन के बाद रूस की बागडोर येल्तसिन के हाथ में थी। आर्थिक सुधार की येल्तसिन की कोशिशें बुरी तरह से नाकाम रहीं। रूस में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया, संपत्ति कुल लोगों के हात में केंद्रित हो गई और आम लोगों की जिंदगी बहुत तकलीफदेह हो गई। हाल में नोमुरा इनवेस्टमेंट फोरम एशिया में रिसर्च इंस्टीट्यूट के चीफ इकोनॉमिस्ट रिचर्च कू ने एक प्रजेंटेशन दिया। इसमें बताया गया कि कैसे येल्तसिन के सुधारों की वजह से रूस में प्रति व्यक्ति जीडीपी में गिरावट आई। यह भी पढ़ें : निर्यात पर निर्भरता घटाने के लिए भारत बढ़ाएगा कोयले का उत्पादन- Moody's कू ने यह भी बताया कि कैसे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के रूस के राष्ट्रपति बनने के बाद लोगों की इनकम नाटकीय रूप से बढ़ी। येल्तसिन के समय में जो प्रति व्यक्ति जीडीपी करीब दो-तिहाई गिर गई थी, वह पुतिन के कार्यकाल में 12 गुना तक बढ़ गई। रूस के लंबे समय तक यूक्रेन से जारी लड़ाई को खिंचने की एक वजह पुतिन की लोकप्रियता है। कू का कहना है कि यूक्रेन क्राइसिस की वजह से महंगाई काफी बढ़ गई है। दूसरी वजह लड़ाई को जारी रखने की यूक्रेन की इच्छा है। पश्चिमी देशों का सख्त रुख भी इस लड़ाई के जारी रहने की एक वजह है। IMF के एक ब्लॉग के मुताबिक, यूक्रेन युद्ध का असर मुख्य रूप से तीन तरह से पड़ेगा। पहला, फूड और एनर्जी जैसी कमोडिटीज की कीमतों की वजह से इनफ्लेशन और बढ़ेगा। इससे लोगों की कमाई की वैल्यू घटेगी। इसका असर डिमांड पर पड़ेगा। दूसरा, पड़ोसी देशों को ट्रेड, सप्लाई में बाधा और विदेश से आने वाले पैसे में कमी का सामना करना पड़ेगा। आखिर में इससे शरणार्थियों की संख्या बढ़ेगी। बिजनेस कॉन्फिडेंस घटने और इनवेस्टर्स के बीच अनिश्चितता का असर एसेट प्राइसेज पर पड़ेगा। येल्तसिन के आर्थिक और राजनीतिक सुधार के उपायों की वजह से पश्चिमी देशों पर रूस के आम नागरिकों के भरोसे में कमी आई है। कू का कहना है कि 1990 के दशक का एक आम रूसी का अनुभव अच्छा नहीं कहा जा सकता। उन्होंने बेहतर जिंदगी और आजाद जीवन का ख्वाब देखा था। लेकिन, उनकी प्रति व्यक्ति जीडीपी घटकर 1,331 डॉलर पर आ गई। इससे रूस दुनिया के सबसे गरीब देशों की लिस्ट का हिस्सा बन गया। पुतिन ने सत्ता में आने के बाद सुधारों का सिलसिला शुरू किया। उन्होंने टैक्स घटाया। बिजनेस करने पर लगी पाबंदियां हटानी शुरू की। लोगों को जमीन का मालिकाना हक देना शुरू किया। इससे इकोनॉमी को सपोर्ट मिला। उन्हें ऑयल की कीमतें बढ़ने का फायदा हुआ। यह रूस के बड़े एक्सपोर्ट में शामिल है। कू का कहना है कि रूस में पुतिन के सपोर्ट की यही वजह है। उन्हें रूस का मसीहा माना जाता है। हालांकि, पुतिन को भी आर्थिक मोर्चे पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। क्रीमिया हमले के बाद रूस में प्रति व्यक्ति जीडीपी में गिरावट आई है। पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने रूस पर असर डाला है। लेकिन, पुतिन अपने मतदाताओं यह समझाने में सफल रहे है कि उन्होंने रूस के एक अभिन्न हिस्से पर फिर से कब्जा कर लिया है।
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