अर्थशास्त्रियों को कहना है कि इस साल मानसून के सामान्य रहने के साथ ही कृषि पैदावर बंपर रहने की उम्मीद है। इसके साथ ही सिस्टम से इजी मनी को निकालने के लिए आरबीआई की तरफ से ब्याज दरों में की जा रही बढ़ोतरी के चलते साल के अंत तक बढ़ती महंगाई नियत्रंण में आने की उम्मीद है। गौरतलब है कि ईंधन और खाने-पीने की चीजों में बढ़ोतरी के कारण देश में महंगाई दर पिछले कई सालों के शिखर पर नजर आ रही है। अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि सरकार के पास महंगाई को रोकने के लिए पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर एक्साइड ड्यूटी घटाने की अभी और गुंजाइश है। सरकार अपनी वित्तीय पॉलिसी के तहत अगर चाहे तो ऐसा कर सकती है लेकिन ज्यादा उम्मीद इस बात की है कि बढ़ती कीमत के दबाव से निपटने के लिए सरकार मौद्रिक नीतियों का ही सहारा लेगी। घटती मांग और मंदी की आशंका के चलते कंज्यूमर ड्युरेबल्स शेयरों में गिरावट, जानिए आगे कैसी रह सकती है इनकी चाल मई महीने में खुदरा महंगाई 7.04 फीसदी पर रही है जो कि अप्रैल महीने के 7.79 फीसदी की तुलना में थोड़ी ही कम रही है। बता दें कि अप्रैल में खुदरा महंगाई 95 महीनों के हाई पर रही थी। इसी तरह मई महीने में थोक महंगाई 15.88 फीसदी के रिकॉर्ड हाई पर रही है। महंगाई में आई इस बढ़त में तीन चौथाई योगदान खाने-पीने की चीजों में आई महंगाई का है। ऐसे में मानसून के सामान्य रहने के कारण खाने-पीने के चीजों के दाम कम होने की संभावना है। मानसून अच्छा रहने से उत्पादन बेहतर रहेगा और इससे आटा, चावल, दाल और सब्जियों की कीमतों में गिरावट आएगी। लगतार 5 महीने तक महंगाई के 2-6 फीसदी के टॉलरेंस लिमिट के ऊपर रहने के बाद आरबीआई ने अपने ब्याज दरों में अब तक 0.90 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अभी आरबीआई की तरफ से ब्याज दरों में 0.80 फीसदी की बढ़ोतरी और होती नजर आ सकती है। महंगाई आम लोगों की जेब में छेद कर रही है। खाने के तेल की कीमतों में आई तेज बढ़ोतरी का महंगाई में सबसे बड़ा योगदान रहा है। लेकिन हाल के दिनों में खाने के तेल की कीमतों में कई कंपनियों की तरफ से कटौती का ऐलान किया गया है जो एक अच्छा संकेत है। आर्थिक मामले के सचिव अजय सेठ ने 16 जून को कहा है कि भारत में एनर्जी की बढ़ती कीमतें और खाने -पीने की चीजों की बढ़ती कीमतें महंगाई की सबसे बड़ी वजह हैं। उम्मीद है कि आने वाले महीनों में इनमें कमी आएगी। सामान्य तौर पर सब्जियों और दूसरे खाने-पीने की चीजों के लिए गर्मियों के महीने कठिनाई वाले होते हैं लेकिन कच्चे तेल की बढ़ती कीमत निश्चित तौर पर एक बड़ी चुनौती है। इससे निपटने के लिए सभी संभव कदम उठाए जा रहे हैं। S&P Global Ratings के अर्थशास्त्री विश्रांत राणा का कहना है कि ग्लोबल बाजार में कमोडिटी की कीमतों में बढ़त महंगाई की मुख्य वजह है। इसके अलावा खाने- पीने की चीजों में आई महंगाई के चलते देश में खुदरा महंगाई तेजी से बढ़ती नजर आई है। हम मानसून पर निर्भर करते हैं ऐसे में मानसून के अच्छे रहने से कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी होगी और महंगाई कम होती नजर आएगी। उन्होंने आगे कहा कि सरकार के पास महंगाई से लड़ने के लिए एक्साइज ड्यूटी घटाने, वैल्यू एडेड टैक्स कम करने और एग्रीकल्चर प्रोडक्ट पर सीधे सब्सिडी देने जैसे विकल्प भी हैं। लेकिन सरकार फिलहाल फौरी तौर पर मौद्रिक नीतियों के जरिए ही महंगाई घटाने की कोशिश करेगी। जिसकी वजह से इस साल हमें ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की और बढ़ोतरी होती नजर आ सकती है। डिस्क्लेमर: मनीकंट्रोल.कॉम पर दिए गए विचार एक्सपर्ट के अपने निजी विचार होते हैं। वेबसाइट या मैनेजमेंट इसके लिए उत्तरदाई नहीं है। यूजर्स को मनी कंट्रोल की सलाह है कि कोई भी निवेश निर्णय लेने से पहले सार्टिफाइड एक्सपर्ट की सलाह लें।
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